-आलोक सिंघई-
सत्ता संभालते ही कमलनाथ सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह ने भोपाल के बीआरटीएस को उखाड़ने की मुहिम चला दी है। संत हिरदाराम नगर के सिंधी व्यवसायियों से हाथ उठवाकर उन्होंने बताया कि लोग बीआरटीएस से परेशान हैं और चुनावी वादा निभाने के लिए उनकी सरकार इसे उखड़वा देगी।मंत्रीजी के पिता और पंद्रह सालों तक कांग्रेस के निर्वासन के जिम्मेदार दिग्विजय सिंह ने भी बेटे के सुर में सुर मिलाकर बीआरटीएस के विरोध में कानूनी सलाह मशविरा जुटाना शुरु कर दिया है। पूर्ववर्ती यूपीए की कांग्रेस नीत सरकार ने ही केन्द्र में रहते हुए बीआरटीएस बनवाने का प्रोजेक्ट शुरु किया था। जिसे बाद में मोदी सरकार ने जारी रखा और देश के कई बड़े शहरों में इसे आकार दिया गया। भाजपा जिस प्रोजेक्ट को जस का तस स्वीकार करती रही उससे आखिर मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार खफा क्यों है।इस पर गौर किया जाए तो एक बड़े षड़यंत्र का खुलासा होता है।
बीआरटीएस की जरूरत शहरों में बढ़ते यातायात के मद्देनजर महसूस की गई थी।पूर्ववर्ती राजीवगांधी सरकार ने जिस तरह आधुनिकीकरण के नाम पर देश में कारों को बनाने और विदेशों में बनी कारों के आयात की अनुमति दी थी उसके दुष्परिणाम जल्दी ही देश के सामने आने लगे। शहरों में आयातित पेट्रोलियम आधारित कारों और दुपहिया वाहनों की बाढ़ आ गई। हर घर के हर सदस्य के लिए लोगों ने अलग वाहन खरीदने शुरु कर दिए। नतीजा ये हुआ कि सड़कों पर वाहनों के चलने की जगह कम पड़ने लगी। लगातार ट्रेफिक जाम से जनता को निजात दिलाने के लिए आनन फानन में सड़कों का चौड़ीकरण करना मजबूरी हो गई। ये परिवहन इसलिए मंहगा था क्योंकि तेल खरीदने के लिए हमें विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती थी। दिग्विजय सिंह की सरकार तो सड़क, बिजली और पानी के संकट से उपजे विरोध के कारण ही उखाड़ फेंकी गई थी।
इसके बाद आई भाजपा सरकारों ने सड़क बिजली और पानी के लिए भारी कर्ज लेना शुरु कर दिया। उमा भारती की सरकार कर्ज लेने की इस मुहिम के खिलाफ थी। उसने पूंजी उत्पादन के पंच ज अभियान को बढ़ावा दिया था। जिसमें जन, जंगल, जल, जमीन व जानवर को बुनियादी सम्पदा मानते हुए इन तत्वों के प्रति लोगों को जागरूक बनाने का विशेष अभियान 15 मई, 2004 से 15 जून, 2004 तक चलाया गया। हालांकि इस बीच उमा भारती के विरुद्ध भाजपा के भीतर से ही मुहिम चलाई जाने लगी। उनके बाद मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर ने राजीव गांधी की चलाई तमाम नीतियों को नए नामों से लागू करना शुरु कर दिया।इसमें गोकुल ग्राम योजना भी थी जिसे पूर्ववर्ती दिग्विजय सिंह सरकार की पंचायती राज योजना और उमा भारती की पंच ज अभियान को मिलाकर लागू किया जाना था। ग्यारह महीने की उनकी सरकार की इन योजनाओं का अंत तब हो गया जब स्वर्गीय प्रमोद महाजन ने आगे बढ़कर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनवा दिया। जोर जबरदस्ती से किए इस पदारोहण के बाद मध्यप्रदेश में विदेशी कर्ज आधारित योजनाओं को लागू करने का स्वर्णयुग आ गया। सड़कों, बिजली और पानी की योजनाओं के लिए भारी भरकम कर्ज लिए जाने लगे। भारी बहुमत होने के कारण इन योजनाओं को दना दन मंजूरियां भी मिलती गईं। भाजपा को ये बहुमत लगातार तीन कार्यकालों तक मिलता रहा। हर छोटा बड़ा प्रोजेक्ट विदेशी कर्ज लेकर चलाया जाता रहा। बीआरटीएस के लिए भी भोपाल नगर निगम को साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए का कर्ज दिलाया गया। इससे शहर को एक सिरे से दूसरे सिरे तक जोडने वाले मुख्य़ मार्ग का चौड़ीकरण भी किया गया और उसके बीच आरक्षित मार्ग भी बनाया गया। सड़क के बीच बनने वाले इस मार्ग का विरोध भी किया गया। कई जगहों पर लोगों को सड़क पार करने के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता था जिससे लोग सबसे ज्यादा परेशान हुए। इस प्रोजेक्ट में कई अंडरपास,फ्लाईओवर और ओवरहेड पाथ वे भी बनाए जाने थे,बजट की कमी के कारण ये नहीं बनाए जा सके। बैरागढ़ के बाजार में बीआरटीएस से मुख्य मार्ग के व्यापारियों का कारोबार भी प्रभावित हुआ इसकी वजह से वहां छुटपुट विरोध भी पनपा।
बीआरटीएस की आज भले ही आलोचना की जाती हो लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने का इससे अच्छा कोई दूसरा तरीका नहीं था। कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने के लिए ही जवाहर लाल शहरी नवीनीकरण परियोजना के तहत लो फ्लोर बसें चलाई थीं। एक कंपनी बनाकर उसे कर्ज दिया गया और बसें शुरु की गईं। इसकी वजह शहरों का अनियंत्रित विकास था। पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकारों ने बहुमंजिला रहवासी प्रोजेक्ट मंजूर नहीं किये नतीजतन दूरदराज के खेतों को बिल्डरों ने कालोनी बनाकर बेचना शुरु कर दिया। इससे कांग्रेस को चंदा देने वाले बिल्डर तो मिले लेकिन शहरों की सीमाएं दूर दूर तक फैल गईं। इससे शहर के एक कोने में रहने वाले व्यक्ति को दूसरे सिरे पर मौजूद अपने दफ्तर, फैक्टरी या बाजार तक पहुंचना भारी मंहगा सौदा साबित होने लगा था। बीआरटीएस इस समस्या के समाधान में मील का पत्थर साबित हुआ। शहर में एंबुलेंस, फायर बिग्रेड, वीआईपी मूवमेंट, सुरक्षित और त्वरित गति से करने के लिए बीआरटीएस सफल साबित हुए। शिवराज सिंह सरकार ने यूपीए सरकार की तमाम योजनाओं को न केवल लागू किया बल्कि कर्ज आधारित विकास के कई नए आयाम भी गढ़े।
शिवराज सिंह सरकार ने कर्ज लेकर बांटने के लिए नई नई योजनाएं शुरु कर दीं। प्रदेश की आय बढ़ाने में जुटे वित्तमंत्री राघवजी भाई को अनैतिकता के मामले में फंसाने और रास्ते से हटाने की मुहिम भी इसी का हिस्सा थी ताकि कर्ज लेने की जरूरत लगातार बनी रहे। इन योजनाओं से जनता तो प्रसन्न हुई ही साथ में शिवराज सिंह के सहयोगी भी मालामाल हो गए। सड़क निर्माण करने वाली कंपनी दिलीप बिल्डकान का टर्नओवर तो अरबों तक पहुंच गया। कांग्रेस के लिए इस विकास के मायाजाल को काटना बहुत मुश्किल हो गया था। सिंहस्थ के बाद मुख्यमंत्री या सरकार बदलने की मान्यता का सहारा लेकर इस बार कांग्रेस इस जाल को काटने में कामयाब साबित हुई है। कांग्रेस जानती है कि विकास नीति के इस स्वरूप की सबसे बड़ी कीमत दिग्विजय सिंह सरकार को ही चुकानी पड़ी थी।
दिग्विजय सिंह ने व्यापमं कांड और अन्य प्रयासों से शिवराज सिंह सरकार पर खूब तंज कसे और उसे अपने इलाके के विकास कार्य जारी रखने पर मजबूर किया।इसके बावजूद वे सत्ता खोने के लिए कांग्रेस के भीतर खलनायक बने रहे। शिवराज के मायाजाल को काटने के लिए उन्होंने पैदल नर्मदा परिक्रमा कर डाली। कांग्रेस ने किसानों के बीच शिवराज सिंह की बढ़ती लोकप्रियता को काटने के लिए कर्जमाफी का दांव खेला और शिवराज की ही शक्ति से उन्हें पराजित कर डाला।
अब कमलनाथ सरकार में जब दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह केबिनेट मंत्री बन गए हैं तब दिग्विजय सिंह अपनी पूर्ववर्ती सरकार का नाश करने वाली विदेशी कर्ज आधारित परियोजनाओं की परतें खोलने में जुट गए हैं। ये योजनाएं भारी भ्रष्टाचार की वजह भी बनीं थीं। प्रदेश पर कर्ज का भारी दबाव भी इनकी वजह से ही बढ़ा है। सरकार को हर महीने कर्ज के ब्याज के रूप में अपनी आय का बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हो जाने के बाद सरकार की चुनौतियां बढ़ी हैं। उसकी आय का बड़ा हिस्सा तो केवल वेतन भुगतान पर ही खर्च हो जाता है। बाकी पैसा ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है। ऐसे में सरकार उन योजनाओं की कलई उतारने में जुट गई है। बैरागढ़ में सिंधियों के आक्रोश की वजह कई हैं। बीआरटीएस भी उसमें एक छोटी वजह है। इसके बावजूद जयवर्धन सिंह उसे मुद्दा बनाकर बीआरटीएस खोदने की अपील कर रहे हैं। हालांकि इसके लिए अब लगभग सौ करोड़ रुपयों का खर्च आने की संभावना है। क्योंकि बीआरटीएस को खोदना फिर उस पूरे ढांचे को नया रूप देना पड़ेगा जिस पर सरकार ने कर्ज लिया है।इसके बावजूद कर्ज ली गई रकम पर ब्याज तो देना ही पड़ेगा। साथ में मूलधन भी चुकाना होगा। इसलिए बीआरटीएस का विरोध एक तरह से गलती पर गलती ही साबित होने जा रहा है।
जाहिर है कि नए नवेले मंत्री जयवर्धन सिंह हों या अल्पमत के बीच विरोधी मानसिकता के दलों का सहारा लेकर सत्ता में आई कमलनाथ सरकार इस तरह के विरोधों से वह नए विवादों को ही जन्म दे रही है। वह अंतर्स्फूर्त विकास की नई परिभाषा साकार कर सकती है। उसे प्रदेश के विकास का अवसर मिला है।इस मौके को यदि वो झगड़ों झंझटों के बीच ही गंवा देगी तो ये एक राजनीतिक गलती साबित होगी। सरकार को चाहिए कि वो अपने कामकाज में पारदर्शिता लाए। सरकार के बजट की बारीकियों को सार्वजनिक करे। यदि वो भी विदेशी कर्ज आधारित विकास को लागू करने वाली सरकार है तब तो उसे इस तरह के विवादों को हवा देना आत्महंता कदम साबित होगा। जरूरत इस बात की है कि वो सार्वजनिक परिवहन के इस ढांचे को न केवल स्वीकार करे बल्कि इसे सफल बनाने की कोई जुगत भी निकाले ताकि बीआरटीएस में बसों के फेरे बढ़ाए जा सकें। नियमित अंतराल पर बसों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। इससे लोगों को निजी वाहनों से चलने की मजबूरी से निजात मिल सकेगी। उन्हें सस्ता परिवहन उपलब्ध कराया जा सकेगा। जो लोकप्रिय फैसला साबित होगा।
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