सड़क को युद्धस्थल बनाया तो फिर रोने की गुजाईश नहीं

आलोक सिंघई

सड़कें हमारी जीवनरेखा हैं और दिन भर हमें इन पर खेल भावना से दौड़ना होता है। न चाहते हुए भी कई बार हमसे गलतियां हो जाती हैं और इसका एकमात्र समाधान यही है कि गलती के लिए तत्काल माफी मांग ली जाए। प्रभावित का गुस्सा पल भर में काफूर हो जाता है और हम भी बिना वजह के तनाव से बच जाते हैं। जब हम कानों में ईयरफोन लगाकर मोबाईल पर बात कर रहे हों और अचानक अपनी गाड़ी सड़क पर डाल दें। इससे मुख्य सड़क पर आने वाले दूसरे वाहन चालक को अचानक स्टीयरिंग मोड़कर ब्रेक लगाना पड़े तो उसके चालक का झुंझलाना वाजिब है। वह भी तब जब इन हालात में कोई निरीह राहगीर कुचलने से बच जाए तो उसके रंज की तीव्रता बढ़ना भी स्वाभाविक है। इन हालात में हमारा दायित्व है कि हम क्षमा मांग लें और आगे बढ़ें। यदि पिटने के भय से हम वहां से भाग भी खड़े हों और प्रभावित गाड़ी वाला पीछा करके भीड़ भरे स्थान पर आपको गरियाने आ जाए तब भी सॉरी के दो बोल आपका काम चला सकते हैं। जब प्रभावित कार चालक अपने परिवार की महिलाओं और बुजुर्ग के साथ हो और अचानक आपको महिला चालक के रूप में सामने पाए तो उसका मकसद सिर्फ आपको उलाहना देना ही हो सकता है।वह राजधानी के सार्वजनिक स्थल पर छेड़खानी नहीं कर सकता। इस पर भी यदि वो पच्चीस वर्षीय वाहन चालक जैन परिवार का लड़का हो तो क्षमा भरे दो बोल उसके गुस्से पर घड़ों बर्फीले पानी का काम कर सकते हैं। क्योंकि उसने अपने संस्कारों से जाना है कि क्षमा वीरों का आभूषण होता है। ये सब तब संभव है जब आप सड़कों की यात्रा खेल भावना से करते हैं।

बेशक सड़कों पर चलते समय कानून हर पल हमारा तरफदार होता है। हमारा अधिकार है कि हम अपने ऊपर होने वाली ज्यादतियों के लिए कानून का सहारा लें। कानून सड़क पर चलने वाले हर राहगीर और वाहन चालक पर समान रूप से लागू होता है। सड़क पर गाड़ी चलाते समय आप स्त्री या पुरुष नहीं केवल चालक होते हैं। आपकी गाडी़ की पहचान के लिए परिवहन विभाग नंबर जारी करता है जिस पर आप स्त्री या पुरुष किसी का भी नाम लिखवा सकते हैं। ये नाम तब तक सार्वजनिक होता है जब तक आपका वाहन सड़क पर होता है। इसे आप गैरेज में रख दें तो ये आम जनता से छुपाया जा सकता है। सड़क पर आप ये नहीं बोल सकते कि मेरे वाहन का रजिस्ट्रेशन नंबर और नाम आपने उजागर कर दिया इससे मेरी स्त्री अस्मिता चोटिल हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने रेप पीड़िता या स्त्री अत्याचार से पीड़िता की पहचान उजागर न करने का कानून बनाया है, सड़क पर चलने वाले वाहन की चालक स्त्री का नाम छुपाने का कोई प्रावधान उसने नहीं किया है। यातायात नियमों में साफ प्रावधान है कि यदि कोई वाहन चालक असावधानी से वाहन चलाता है तो उसका लाईसेंस निरस्त किया जा सकता है। इसके बावजूद परिवहन विभाग की भर्राशाही के कारण गलत लाईसेंस जारी होना और उसका निरस्त न होना लगभग मजाक बना हुआ है।

दरअसल आजादी के बाद से कांग्रेस की सरकारें आम नागरिकों को शैतान पर कंकर मारने की सोच से हांकती रहीं हैं। सर ए ओ ह्यूम ने भारतीयों की कांग्रेस को अंग्रेजों के शॉक एब्जार्बर के लिए बनाया था। समय के साथ लोगों ने अंग्रेजों को शैतान पाकर कंकर फेंकने शुरु कर दिए और वही कांग्रेस स्वाधीनता संग्राम की वजह बनी।महात्मा गांधी जानते थे कि ये मानस आगे चलकर आत्मघाती साबित होगा इसलिए उन्होंने कहा कि कांग्रेस का काम अब खत्म हो गया इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए था। इसके बावजूद सत्ता लोलुपों ने उसे चलने दिया। उन्होंने कंकर मारने के इस भाव को राजाओं की ओर, फिर सामंतों की ओर, फिर पूंजीपति सेठों की ओर मोड़ दिया। बालीवुड की फिल्में नायक और खलनायक के दो ध्रुवों के बीच ही झूलती रहती हैं। खलनायक जितना पीटा जाएगा नायकत्व उतना ज्यादा उभरेगा। आधुनिक भारत में यही भाव अभिशाप बन गया है। कश्मीर में शैतान पर कंकर मारने वाला यही भाव सेना को खलनायक बनाए फिर रहा है और सेना के बूटों तले रौंदा जा रहा है। देश की जनता ने सत्ता की चाभी भाजपा को सौंपी कि वह इस गलती को नहीं दुहराएगी। जबकि भाजपा आज उससे बड़ी कांग्रेस साबित हो रही है। महिला वोटों की खेती के लिए उसने बालिका से बलात्कार करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बना दिए। जबकि दोषियों को दंड देने के पर्याप्त विधान पहले से मौजूद थे।

इसका विपरीत असर ये हुआ है कि आम स्त्री के मन में असुरक्षा का भाव घर कर गया है। वह सोचती है कि हर पुरुष रेपिस्ट है, अत्याचारी, आतताई है।जबकि हकीकत में पुरुष और स्त्री एक दूसरे के पूरक हैं। भोपाल के प्रेस काम्पलेक्स में घटित वाहन दुर्घटना को भी स्त्री के विरुद्ध साजिश बताने की कोशिश की जा रही है। लापरवाही से उपजे तनाव को क्षमा के दो बोल से ठंडा किया जा सकता था। दुर्घटना का एक पक्ष टीवी की एंकर स्वयं हो तब तो एकमात्र यही अपेक्षा की जा सकती है। पर समस्या शैतान पर कंकर फेंकने वाली सोच में निहित है। उस स्त्री के सलाहकार जब उसे उकसा रहे हों कि उसे गलती के लिए टोका जाना स्त्री अस्मिता पर प्रहार है। पत्रकार होते हुए कोई भला उसे कैसे टोक सकता है। तब रायता फैलना स्वाभाविक ही है। फिर जब इसमें राजनीति प्रविष्ट हो जाए। कांग्रेस के नेता, ठेकेदार, और माफिया शामिल हो जाएं तो फिर जाहिर है कि भाजपा की मौजूदा सरकार को लानत मलानत से कौन बचा सकता है। इस पर भी जब विपक्ष की बागडोर किसी पुतुल प्रेमी को सौंप दी गई हो तो फिर पुलिस को हर दिन तैयार रहना होगा कि उस पर प्रदेश भर के विभिन्न स्थानों पर स्त्री की रक्षा न कर पाने का लांछन जरूर लगेगा।

समाज के जिम्मेदार लोगों को सोचना होगा कि सड़क पर चलने वाले वाहन धारक यदि अपने चालक की लापरवाही का भूल सुधार न करेंगे तो सड़कें खेल का मैदान बनने की जगह युद्ध भूमि बन जाएंगी। फिर जब आप युद्ध भूमि में प्रवेश कर जाएं तो फिर स्त्री, बुजुर्ग या लाचार होने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। घटनास्थल की सच्चाई से भागकर आप इसे युद्ध की पृष्ठभूमि में ले जाना चाहते हैं तो फिर आपकी नियत आसानी से समझी जा सकती है। विषय पुलिस की विवेचना से ज्यादा आत्मचिंतन का है। इसे समझेंगे तो न केवल यातायात, खेल बन जाएगा बल्कि, देश भी सीरिया बनने से बच जाएगा।

Print Friendly, PDF & Email

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*