वित्तीय शिक्षा
21वीं शताब्दी की पहली दशाब्दी में लोगों में वित्तीय साक्षरता फैलाने की आवश्यकता को सभी ने स्वीकार किया। अधिकतर देश वित्तीय शिक्षा के लिए एकीकृत और समन्वित राष्ट्रीय रणनीति अपना रहे हैं। भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है, जहां राष्ट्रीय स्तर पर समग्र विकास पर जोर दिया जा रहा है और अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और इसके साथ एक जीवंत और स्थिर वित्तीय प्रणाली विकसित करने की तुरंत आवश्यकता महसूस की जा रही है, ऐसी स्थिति में यह और भी जरूरी हो गया है कि जल्दी ही एक राष्ट्रीय रणनीति तैयार करके उसे लागू किया जाए।
वित्तीय साक्षरता फैलाने के कार्य में केन्द्र और राज्य सरकारें, वित्तीय नियामक, वित्तीय संस्थाएं, सभ्य समाज, शिक्षाविद् और अन्य एजेंसियां जैसे कई पक्ष शामिल हैं। इसलिए एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति बनाना जरूरी है, ताकि ये सभी उस रणनीति के अनुसार एकरूपता से काम करें और विरोधी उद्देश्यों के लिए काम न करें।
इस प्रकार राष्ट्रीय रणनीति का उद्देश्य वित्तीय दृष्टि से एक जागरूक और सशक्त भारत बनाना है। इसका उद्देश्य एक विशाल वित्तीय शिक्षा अभियान चलाना है जिससे आर्थिक खुशहाली के लिए लोगों को उपयुक्त वित्तीय सेवाओं के जरिए अपने धन का अधिक कारगर तरीके से प्रबंधन करने में मदद मिल सके।
वित्तीय साक्षरता क्या है?
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने वित्तीय साक्षरता की परिभाषा इस प्रकार दी है कि-यह वित्तीय जागरूकता, ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और व्यवहार का संयुक्त समग्र रूप है, जिसकी सहायता से वित्तीय फैसले लिये जा सकें और व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकें। लोग वित्तीय शिक्षा की प्रक्रिया के माध्यम से वित्तीय साक्षरता प्राप्त करते हैं।
वित्तीय समावेशीकरण : सरकार की उच्च प्राथमिकता वाली नीति
भारत सरकार ने वित्तीय साक्षरता को फैलाने के महत्व को स्वीकार किया है, ताकि घरेलू बचतों को निवेशों में लगाने के लिए जोरदार प्रयास किये जा सकें। लेकिन वित्तीय उत्पादों की विविधिता और जटिलता ने एक साधारण व्यक्ति के लिए सही प्रकार का फैसला लेना मुश्किल कर दिया है। वित्तीय साक्षरता से विश्वास, ज्ञान और कौशल में वृद्धि होती है, जिससे वित्तीय उत्पादों और सेवाओं का सही लाभ उठाया जा सकता है और अपनी वर्तमान तथा भावी परिस्थितियों पर अधिक नियंत्रण किया जा सकता है। वित्तीय साक्षरता से शोषण करने वाली वित्तीय योजनाओं और साहूकारों द्वारा लिये जाने वाले अधिक ब्याज से भी लोगों को और समाज को बचाने में मदद मिलती है।
यह उम्मीद की जाती है कि वित्तीय शिक्षा से अर्थव्यवस्था में कई गुणा प्रभाव होगा। एक सुशिक्षित परिवार नियमित रूप से बचतें करेगा, सही योजनाओं में निवेश करेगा और अपनी आमदनी बढ़ायेगा। इस प्रकार व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा तथा समाज की भलाई होगी।
अंतर्राष्ट्रीय अनुभव और भारत के लिए सबक
विश्व में चैक गणराज्य, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, स्पेन और ब्रिटेन जैसे देश वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय रणनीति पहले ही लागू कर चुके हैं तथा कई अन्य देश रणनीति बनाने और उसे लागू करने की प्रक्रिया में हैं।
भारत में विशाल विविधता को देखते हुए हमें राष्ट्रीय रणनीति के अंतर्गत कई स्तरों पर काम करना होगा। राष्ट्रीय रणनीति का प्रारूप तैयार कर लिया गया है, जिसके उद्देश्य हैं – 1. वित्तीय सेवाओं, विभिन्न वित्तीय उत्पादों और उनकी विशिष्टताओं की जानकारी के लिए उपभोक्ताओं को जागरूक बनाना और शिक्षित करना। 2. जानकारी को व्यवहार में बदलने की वृत्तियों को विकसित करना और 3. वित्तीय सेवाओं के लाभार्थियों के रूप में उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों की जानकारी देना।
वित्तीय जगत में तेजी से हो रहे परिवर्तनों को देखते हुए रणनीतिक कार्य योजनाओं के जरिए राष्ट्रीय रणनीति को 5 वर्ष के अंदर लागू करने की व्यवस्था रखी गई है।
वित्तीय साक्षरता और समावेशीकरण का आकलन करने के लिए नमूना सर्वेक्षण
इस रणनीति में वित्तीय समावेशीकरण और वित्तीय साक्षरता की स्थिति का आकलन करने के लिए राष्ट्रव्यापी नमूना सर्वेक्षण की व्यवस्था है। इस सर्वेक्षण के अंतर्गत वित्तीय समावेशीकरण की स्थिति, विभिन्न वित्तीय उत्पादों के बारे में वित्तीय जागरूकता का स्तर, सुविचारित फैसले लेने के लिए वित्तीय क्षमता का स्तर तथा धन के प्रति लोगों का नजरिया और जोखिम उठाने के प्रति उनकी सोच, जैसे पहलुओं का आकलन किया जाएगा।
सर्वेक्षण के आकलन के आधार पर विभिन्न वित्तीय नियामक लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए वित्तीय शिक्षा के अपने प्रकल्प बनायेंगे, बाद में स्कूल पाठयक्रम, सोशल मार्किटिंग तथा रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र आदि के माध्यम से इनका प्रचार किया जाएगा तथा समर्पित वित्तीय शिक्षा वेबसाइट भी विकसित की जाएगी। इस कार्य में स्व-सहायता समूहों, माइक्रो-वित्तीय संस्थाओं, निवेशकों और उपभोक्ता एसोसिएशनों आदि की भी सहायता लेने का प्रस्ताव है।
स्कूल पाठ्यक्रम में वित्तीय शिक्षा
सरकार का मानना है कि वित्तीय शिक्षा स्कूल से ही शुरू हो जानी चाहिए और लोगों को जीवन में जितना जल्दी हो सके, वित्तीय मामलों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने स्कूलों के लिए अच्छे वित्तीय शिक्षा कार्यक्रम तैयार करने के उद्देश्य से सम्बद्ध पक्षों के लिए तथा नीति निर्माताओं की सहायता के लिए मार्ग-निर्देश तैयार किये हैं।
लेकिन यह बात स्पष्ट रूप से समझनी होगी कि वित्तीय शिक्षा स्कूलों में पढ़ाये जाने के लिए अलग विषय नहीं होगा, इसे केवल स्कूल पाठ्यक्रम में उचित रूप से समावेशित करना होगा। उदाहरण के लिए स्कूलों में गणित के विषय में चक्रवृद्धि ब्याज के बारे में समझाया जाता है कि एक व्यक्ति –ए दूसरे व्यक्ति –बी को कुछ वार्षिक ब्याज दर पर पैसा उधार देता है और उस पर चक्रवृद्धि ब्याज लगता है। इस अवसर का फायदा वित्तीय शिक्षा के लिए उठाया जा सकता है और लोगों को इस तरह समझाया जा सकता है कि एक कंपनी बैंक से पैसा उधार लेती है, या एक बैंक उपभोक्ता, सामान्य निश्चित अवधि का जमा खाता खोलने की बजाय एक सामूहिक जमा खाता खोलता है। इसी प्रकार नैतिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों में ऐसी बातें शामिल की जा सकती हैं, जो रोजमर्रा के वित्तीय लेन-देनों पर आधारित हों।
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड-सीबीएसई प्राथमिक स्तर से ऊपर वाली कक्षाओं के लिए स्कूल शिक्षा में समन्वित रूप से वित्तीय शिक्षा को शामिल करने के बारे में सिद्धांत रूप से सहमत हो गया है और इस संबंध में विशेषज्ञों की एक समिति का भी गठन किया गया है।
वित्तीय शिक्षा के प्रचार में नियामकों की भूमिका
भारत में विभिन्न वित्तीय नियामक, जैसे भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति नियमन बोर्ड-सेबी, विनियामक और विकास प्राधिकरण आदि बहुसूत्रीय प्रणाली के जरिए विशाल वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम पहले ही शुरू कर चुके हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने स्कूल और कॉलेज के छात्रों, महिलाओं, ग्रामीण और शहरी गरीबों, रक्षा सेनाओं के कर्मचारियों, और वरिष्ठ नागरिकों सहित विभिन्न लक्षित समूहों को केन्द्रीय बैकों के बारे में और सामान्य बैंकिंग प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी देने के लिए ‘प्रोजेक्ट फाइनेंशियल लिटरेसी’’ नाम से एक परियोजना शुरू की है। सेबी ने देशभर में अनुभवी और जानकार लोगों की एक सूची तैयार की है, जो विभिन्न समूहों को बचतों, निवेश, वित्तीय आयोजन, बैंकिंग, बीमा, सेवानिवृत्ति के बाद धन के उपयोग की योजनाओं, आदि जैसे विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी देने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करते हैं। विभिन्न राज्यों में अब तक ऐसी 3500 से अधिक कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं, जिनसे लगभग 3 लाख लोग लाभ उठा चुके हैं।
बीमा नियमन और विकास प्राधिकरण पॉलिसी धारकों को अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में और विवादों को हल करने के तरीकों के बारे में रेडियो, टेलीविजन और समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी, हिन्दी तथा 11 अन्य भारतीय भाषाओं के जरिए सरल भाषा में संदेश और जानकारियां देते हैं।
पेंशन निधि और विकास प्राधिकरण, आम जनता को सामाजिक सुरक्षा संबंधी संदेश देता है। इस प्राधिकरण ने पेंशन के बारे में आमतौर पर पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची को अपनी वेबसाइट पर डाला है तथा समाज के वंचित वर्गों को पेंशन सेवाओं का लाभ दिलाने के लिए यह विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग कर रहा है। इसी प्रकार, व्यावसायिक बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, कमीशन एजेंसियों और म्युचुअल फंडों ने भी वित्तीय शिक्षा के बारे में प्रयास किये हैं। इसके लिए उन्होंने सेमिनार आयोजित किये हैं और समाचार पत्रों में अभियान चलाए हैं तथा क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, जैसी जानकारियां उपलब्ध कराई हैं।
इन सभी संस्थानों ने वित्तीय साक्षरता प्रदान करने के लिए जो विशाल सामग्री तैयार की है, उसको एकत्र करने और वर्गीकृत करने की आवश्यकता है, ताकि वह देश में वित्तीय शिक्षा के लिए ज्ञान का आधार बन सके।
संस्थागत प्रबंधों के अंतर्गत राष्ट्रीय वित्तीय शिक्षा संस्थान की स्थापना की गई है, जिसके सदस्यों में विभिन्न नियामकों के प्रतिनिधि हैं। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य विभिन्न वित्तीय क्षेत्रों के लिए वित्तीय शिक्षा की सामग्री तैयार करना होगा। यह संस्थान खासतौर पर वित्तीय शिक्षा के लिए एक वेबसाइट भी तैयार करेगा।
पूरी नीति पर अमल मौजूदा संस्थागत तंत्र के माध्यम से किया जाना है। वित्तीय समावेशीकरण और वित्तीय साक्षरता की वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद की उप-समिति के तकनीकी दल को राष्ट्रीय नीति के अमल पर निगरानी रखने के लिए जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
* इस लेख के लिए सामग्री 16.07.2012 को जारी भारतीय रिजर्व बैंक के वित्तीय शिक्षा की राष्ट्रीय रणनीति-2012 के प्रारूप से ली गई है। (पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई)
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