-आलोक सिंघई-
ठेठ देहाती किसान जब शहर जाता है तो वहां बिकते मठे को देखकर वो ये जरूर बोलता है कि इससे तो ज्यादा अच्छा हमारा गांव है जहां घर घर मही मिल जाता है। कुछ इसी तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमेरिका के वाशिंगटन पहुंचकर जब वहां की खराब सड़कें देखीं तो बरबस बोल उठे कि इससे अच्छी सड़कें तो हमारे मध्यप्रदेश की हैं। उनकी इस प्रतिक्रिया को देश में गौरव के बोल समझा जा सकता था। आम नागरिक की प्रतिक्रिया यही होती कि हमारी सरकार ठीक दिशा में काम कर रही है। इसके विपरीत भारत के संवाद तंत्र के बतोलेबाजों ने सड़कों का बतंगड़ बना दिया। कुछ ने बगैर सोचे समझे इस सुर में अपने सुर भी मिला दिए। वे इस बतंगड़ के गुबार में छिपे साजिशकर्ताओं को नहीं पहचान पाए। कुछ ने तो पहचानने का जतन भी नहीं किया। राजनैतिक विरोधी होने का कथित धर्म समझकर कई बंधु मैदान में खम ठोकने भी जुट गए।
जिन लोगों ने कांग्रेस की दिग्विजय सिंह सरकार का कुशासन करीब से देखा है वे भी मध्यप्रदेश में सड़कों के विस्तार से संतुष्ट नहीं हैं। होना भी नहीं चाहिए। प्रदेश में सड़कों की दुर्दशा भी कुछ यही है। बरसों के प्रयासों के बावजूद ऐसी ढेरों सड़कें हैं जो आज भी अपने निर्माण की बाट जोह रहीं हैं। इससे बड़ी संख्या उन सड़कों की हैं जिन पर सरकारी बजट की कुछ बूंदें हर साल गिरती हैं और मलहम पट्टी करके उन्हें चलने फिरने लायक बना दिया जाता है। वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव बिजली, सड़क और पानी के मुद्दे पर ही लड़ा गया था। कांग्रेस के बंटाढार मुख्यमंत्री दिग्गी का कहना था कि उनकी सरकार ने मानव विकास सूचकांकों पर ज्यादा ध्यान दिया इसलिए आधारभूत ढांचे के विस्तार के मामले में उनकी सरकार थोड़ा पिछड़ गई। जबकि हकीकत ये थी कि जाति, धर्म और वर्गों को बांटने में सिद्धहस्त कांग्रेस की सरकार ने पंचायती राज व्यवस्था जैसा नया शिगूफा छोड़ा था। गरीबी हटाओ के नारे पर हजारों करोड़ रुपए फूंक दिए थे। इसी तरह की ढेरों फर्जी योजनाओं पर जनता का बजट फूंक दिया गया और निर्माण कार्यों को कमीशन बाजी की भेंट चढ़ा दिया गया। मध्यप्रदेश की जनता ने इतनी नाकारा और बेशर्म सरकार इससे पहले नहीं देखी थी। नतीजतन उसने लगभग जन क्रांति के माध्यम से उस सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। अपदस्थ दिग्गी को जेल भेजने का जनादेश उसके राघौगढ़ में जमा दौलत और रिलायंस जैसे समूहों में बेनामी निवेश के चलते हाहाकारी साबित हो सकता था। निर्माण की चुनौतियों से जूझने में लगी भाजपा की सरकारों ने विवाद बढ़ाने के बजाए निर्माण पर ज्यादा ध्यान दिया। नतीजतन आज मध्यप्रदेश की सड़कों की तस्वीर बदल चुकी है।
भाजपा की सरकार ने सत्ता में आते ही 2004 में मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम का गठन किया। इसका उद्देश्य खासतौर पर राज्य के राजमार्गों के निर्माण और उन्नयन के लिए किया गया था। प्रदेश की अधो संरचना के उन्नयन की जवाबदारी भी इसी निगम को दी गई। गठन के बाद से निगम ने 10039 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया है। अकेले निजी पूंजी निवेश से लगभग 5862 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गईं। इन सड़कों के रखरखाव की जवाबदारी भी इन्हीं कंपनियों को दी गई। हालांकि सड़कों के साथ नालियां न बनाए जाने से हर बरसात में ये सड़कें भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। ठंड के सीजन में इसीलिए हर साल करोड़ों रुपए मरम्मत के नाम पर फूंकना पड़ते हैं।
मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम ने एशियन डेवलपमेंट बैंक से चार चरणों में 11000 लाख डॉलर का कर्ज लिया और ये सडकें बनवाईं। भारत सरकार की वीजीएफ योजना का भी खूब लाभ उठाया गया और मध्यप्रदेश सबसे ज्यादा वायबिलिटी केप फंडिंग पाने वाला राज्य बन गया। धड़ाधड़ लिए गए इन कर्जों से सरकार के पास इतना अधिक धन आया कि मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम ने स्टेट डाटा सेंटर, मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम का प्रशासनिक भवन, मुंबई का मध्यलोक भवन, नई दिल्ली का मध्यांचल भवन और मध्यप्रदेश भवन, क्रिस्टल आईटी पार्क जैसे भवन भी बना डाले। निगम की ओर से सिंगरौली में बीओटी योजना में एयरपोर्ट भी बनाया जा रहा है। निगम की आय से विदिशा, रतलाम, और शहडोल जिलों में चिकित्सा महाविद्यालयों, इंदौर में श्रमोदय विद्यालय भी बनवाए जा रहे हैं।
अमेरिका की सड़कों की तुलना करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान का बतंगड़ बनाने वालों की मंशा केवल इसी से भांपी जा सकती है कि वे जनता के बीच असंतोष के बीज बोकर सड़कों के नाम पर और भी ज्यादा कर्ज लेने की जरूरत जगाना चाहते हैं। सड़क विकास निगम ने अगले दस सालों की जो कार्ययोजना बनाई है उसमें राज्य के राजमार्गों की लंबाई बढ़ाकर 15000 किलोमीटर करना शामिल है। राज्य के बजट, मंडी बोर्ड और बहुपक्षीय एजेंसियों से जुटाए जाने वाले वित्तीय संसाधनों से सामान्य जिला मार्गों को मुख्य जिला मार्गों के रूप में उन्नयन किया जाना है। शहरों के ट्रेफिक से निपटने के लिए रिंग रोड बनाए जाने हैं। सभी मार्गों के लिए एकीकृत सड़क प्रणाली शुरु की जा रही है। जिसमें सभी सड़क निर्माण एजेंसियों की सड़कों को शामिल कर लिया गया है।
गौरतलब है कि कांग्रेस के बंटाढार प्रदेश में भाजपा ने सत्ता में आकर आधारभूत संरचनाओं के विकास का महाअभियान तो चलाया लेकिन अब लोगों के सब्र का बांध टूटने लगा है। प्रदेश की जनता रोजगार, भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मसलों पर सत्ता के खिलाफ लामबंद होने लगी है। आधारभूत संरचनाओं के विकास में रबड़ी पाने वाली एजेंसियां और उनके दलाल साफ तौर पर समझते हैं कि यदि इन जन आकांक्षाओं पर लगाम नहीं लगाई गई तो सड़कों के विकास के नाम पर अधिक कर्ज लेने का उनका अभियान ठंडा पड़ जाएगा। इसलिए इसी लाबी ने मुख्यमंत्री की एक सहज प्रतिक्रिया को जनता के बीच बखेड़ा बना दिया। सोशल मीडिया के बयानवीर हों या खुद को समर्पित समाजसेवी बताने वाले मीडिया कर्मी सभी एक सुर में दलालों की इच्छाओं में पंख लगाने जुट गए हैं। आज जब प्रदेश में कई हजार गुना मंहगी सड़कों का उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना होना था वहां आज पर्यटन जैसे खर्चीले अभियान को बढ़ावा दिया जा रहा है। जाहिर है ये उलटबांसी जन असंतोष की वजह बनने जा रही है,क्योंकि जनता की स्वतः स्फूर्त आय की भरपाई कोई भी सरकार एक रुपए के गेहूं चावल या दीन दयाल रसोई से नहीं कर सकती। भाजपा के रणनीतिकारों को ये अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
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