कैसे भुला दें मुखर्जी का बलिदान

(6 जुलाई जन्मदिवस)
…..- भरतचन्द्र नायक
लम्हों ने खता की है सदियों ने सजा पायी। आजादी के बाद देश में गठित पहली राष्ट्रीय सरकार के अंतद्र्वंद का ही दुष्परिणाम है कि आज कश्मीर की मनोरमवादियां रक्तरंजित हो रही है। काश राष्ट्रीय सरकार में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आव्हान पर शामिल होने वाले उस दूरदर्शी, दार्शनिक राजनेता डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की चेतावनी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने ध्यान दिया होता किंतु सेकुलरवाद के पुरोधा बनने की चाहत में जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा और धारा 370 ईजाद करके न केवल भारत को लहुलुहान करने का साजो सामान दीर्घजीवी बना दिया अपितु भारत के अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर में अलगाववाद के बीज बो दिए गए। पं. नेहरू से मतभेद उभरने और मंत्रिपद से इस्तीफा देने का वाजिब कारण यही था कि डाॅ. मुखर्जी ने कहा था कि पाकिस्तान से विस्थापित शरणार्थी जितनी भूमि छोड़कर आए है उतनी भूमि पाकिस्तान से ली जाए। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल सहमत थे लेकिन पं. नेहरू ने बात अनसुनी कर दी। डाॅ. मुखर्जी की पहल पर आधा पंजाब ओर आधा बंगाल बच गया। डाॅ. मुखर्जी ने विभाजित भारत के पाकिस्तान से इतना भूभाग बचा कर सच्चे राष्ट्रवाद का सबूत दिया। उनके इस्तीफा का आगाज उन्होंने संसद में देकर किया और जनसंघ गठित कर धर्म, जाति, नस्ल का विचार किए बिना सभी के लिए जनसंघ के द्वार खोलकर राष्ट्रवादियों पर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाने वालों के लिए माकूल जवाब दिया।

डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर को भारत की मुख्यधारा में जोड़ने के लिये अनुच्छेद 370 का प्रखर विरोध किया। जम्मू-कश्मीर में प्रवेश के लिये परमिट प्रणाली को डाॅ मुखर्जी ने देश की अखंडता में बाधक बताया और इसके विरोध में जब बिना प्रवेश परमिट के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने का आन्दोलन किया तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.नेहरू तब के जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के तुष्टीकरण पर आत्म मुग्ध थे। इस साजिश में शेख अब्दुल्ला को किसकी शह थी यह बताना अब व्यर्थ है। लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं कि उन्हें जानबूझकर ऐसी जगह हिरासत में लिया गया जहाॅं भारतीय संविधान, सर्वोच्च न्यायालय, देश का संवैधानिक हस्तक्षेप बेअसर था। देश की अखंडता के लिए प्रतिबद्धता के लिए रात में डाॅ- मुखर्जी के प्राण चले गये। तब न तो डाॅ.मुखर्जी को उपचार की सुविधा हासिल हुई और न न्यायिक समीक्षा का अवसर मिला। डाॅ.मुखर्जी की मौत ने भारतीय उपमहाद्वीप को झकझोर दिया। पं नेहरू ने अपने संवदेना संदेश में डाॅ मुखर्जी की माताजी योग माया देवी से उनकी इच्छा के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने डाॅ मुखर्जी की मेडीकल हत्या पर दुख व्यक्त करते हुए न्यायिक जांच की मांग की थी। जो कभी पूरी नहीं हुई। कुछ ही हफ्तों में डाॅ.मुखर्जी के बलिदान के बाद जम्मू-कश्मीर में प्रवेश परमिट की प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। वहाॅं अलग संविधान, अलग निशान और अलग प्रधान की व्यवस्था को बदल दिया गया। फिर भी डाॅ.मुखर्जी की धारा 370 को समाप्त किये जाने की माग को तुष्टीकरण की बलिबेदी पर चढ़ा दिया गया।

जम्मू-कश्मीर को लहूलुहान करने में धर्म निरपेक्षता के छदम् ने कम नुकसान नहीं पहुंचाया है। कांग्रेस जिस रास्ते पर चली वह वास्तव में डाॅ.मुखर्जी के बलिदान का अपमान है। पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता देने की बात कह कर भारत की सवा अरब जनता के हितों के साथ खिलवाड़ किया। सरहदों के बाहर बुने ये जाल में फंसना हमारी नियति बनी है। आजादी के बाद पाकिस्तान के फौजियों ने कबालियों के वेश में जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण किया उसके पहले जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह अपनी रियासत का भारत में विलय कर चुके थे। इसी तरह की अन्य रियासतों को पाकिस्तान में विलय की आजादी मिली थी। फिर पाकिस्तान किस आधार पर जम्मू-कश्मीर के विलय पर प्रश्न उठाता है। इस मर्म की हमने अनदेखी की। उसका खामियाजा आज तक भुगतने के लिये भारत अभिषप्त है। कबायलियों के हमले का भारतीय फौज ने माकूल जबाव दिया। पाकिस्तान के फौजियों को खदेड़ा और छटी का दूध याद दिलाया। लेकिन हम तुष्टीकरण के अलंवरदार जम्मू कश्मीर को शेख अब्दुल्ला के मन के माफिक जीती हुई जमीन छोड़ते चले गये। जो कसर बाकी थी वह उनके कुल दीपक डाॅ फारूख अब्दुल्ला ने स्वायत्तता दिये जाने का बिल लाकरपूरी कर दी। कांग्रेस इस बिल पर अपनी पुष्टि की मोहर लगाकर विश्व को अपनी धर्म निरपेक्षता का सबूत देने की खातिर देश का मुकुट भारत विरोधी देश को तश्तरी में भेंट करने के लिये आतुर रही थी। जो जनविरोध के कारण नहीं हो सका।

कांग्रेस जम्मू कश्मीर में पीडीपी की कठपुतली बनकर आतंकवादियों के प्रति नरमी बरती रही। जिस स्वायत्तता को पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह भरोसा परोस रहे थे। उसकी शकल क्या होती? यह जानकर सिइस पैदा हो जाती है। वे 1953 की उस व्यवस्था को बहाल करना चाहते थे, जिसके लिये डाॅ. मुखर्जी ने प्राण गवाएं। हजारों लोगांे ने अपना खून बहाया और लाखों कश्मीरी अपने घर छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बनकर नारकीय जिन्दगी बसर कर रहे हैं। आटोनामी दिये जाने की कमेटी मेें कर्णसिंह की अपनी भूमिका रही है। उन्हें आज देश को समझाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता दिये जाने से देश की अखंडता का कौन सा लक्ष्य पूरा होना था। पहले ही दो बटे पांच धरती पाक अधिकृत कश्मीर के नाम पर हमसे छिन चुकी है। उसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। जम्मू-कश्मीर रिसेटिलमेन्ट एक्ट को जीवित करके विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर से पाकिस्तान जा चुके लोगों को पुनः जम्मू-कश्मीर लौटने की दावत तत्कालीन पीडीपी सरकार ने दी थी। कश्मीर घाटी से आतंकवादी हमलों से परेशान होकर पलायन कर चुके दो लाख कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बन चुके हैं। उनके लौटकर अपने घरों मंे आबाद करने में किसी ने कोई उत्सुकता दिखायी। भारतीय जनसंघ की मांग पर गौर नहीं किया गया। अलबत्ता पूर्व प्रधानमंत्री ने अलगाववादियों के बीच धर्म निरपेक्ष छवि चमकाने के लिये स्वायत्तता देने का राग अलापा। देश की अखंड़ता, जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिये अपने प्राण न्यौछावर करने वालों के बलिदान का मजाक उड़ाया गया है। त्रिशंकु विधानसभा का गठन होने पर भाजपा ने पीडीपी से हाथ मिलाकर जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को कायम रखा है। जम्मू कश्मीर के बीच भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया है। राज्य सरकार ने अलगाववाद से युवा पीढी को आगाह किया है। युवकों को सुरक्षा बल में प्रवेश देकर रोजगार दिया जा रहा है। कश्मीरी नवजवानों को सेवा में प्राथमिकता दी जा रही है।

वोटो के लिये जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वालों की मंशा को बेनकाब किये जाने की जरूरत हैै। यही डाॅ. मुखर्जी के लिये सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। धर्म निरपेक्षता के छदम की अब देश को कितनी कीमत चुकाना पडेगी इसका अंदाजा तो स्वायत्तता की मांग उठाने वाली पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस को लग जाना चाहिए था। यदि जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता दी गयी होती तो 1953 की स्थिति बहाल हो जाती। अनुच्छेद 370 तो स्थायी हो जाता। स्वायत्तता दिए जाने से भारत का कोई नागरिक जम्मू-कश्मीर का नागरिक कभी नहीं हो सकेगा। एक तरह से जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार का नियंत्रण एक दम समाप्त हो जाता यहाॅं तक कि यदि कभी विदेशी आक्रमण जम्मू-कश्मीर की सरहदों पर होता है तो केन्द्र सरकार वहाॅं आपात काल तक घोषित करने में सक्षम नहीं होती। सैद्धांतिक रूप से सुरक्षा, दूरसंचार विदेशी मामलों में भारत का दखल रहेगा, लेकिन नियंत्रण नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय, निर्वाचन आयोग, नियंत्रक महालेखा परीक्षक की भूमिका जम्मू-कश्मीर में समाप्त हो जायेगी। जिस प्रवेश परमिट प्रणाली को समाप्त करने के लिये डाॅ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने प्राणों की आहुति दी उसकी बहाली स्वायत्तता दिये जाने का खास मकसद रहा है। कांग्रेस हमेशा यह कहती रही कि साम्प्रदायिक आधार पर देश का विखंडन नहीं होने देगे, लेकिन देश का बटवारा साम्प्रदायिक आधार पर कराया। जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता का मतलब समझकर इस खतरे से आवाम को आगाह करना ही उस महामना डाॅ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जम्मू कश्मीर की जनता ने जान हथेली पर रखकर विधानसभा और लोकसभा के चुनावों का सामना किया। अलगाववादियों को अप्रासंगिक बना दिया।

आज जो अशांति है वह चंद जिलों तक सीमित है, लेकिन वोटों की खातिर अपने को सेकुलरवादी बताने के चक्कर में राजनैतिक दल देश की अखंडता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पीडीपी के साथ गठबंधन करने के पीछे एक बड़ा लक्ष्य रहा है कि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की सरकार का गठन कर सीमांत प्रदेश का सांस्कृतिक वैभव लौटाया जाए। अपने घरों से बेघर हुए लाखों कश्मीरी पंडितों की घर वापसी हो, लेकिन इसे विफल करने के पीछे पाकिस्तान का नापाक इरादा है और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के इरादे को विश्व बिरादरी में बेनकाब करने में सफलता पायी है। जम्मू कश्मीर से आतंकवाद और अलगाववाद दफन हो। जम्मू कश्मीर के उस अवाम को सुकून मिले जिसने भारत में विलय के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाग लेकर लोकशाही को बरकरार रखा है। डाॅ. मुखर्जी ने जीवन पर्यन्त इसके लिए संघर्ष किया। उनके बलिदान के कारण ही जम्मू कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग है। मुठ्ठी भर अलगाववादी जिसे आजादी का संघर्ष बता रहे है उसे दुनिया समझ गयी है। पाकिस्तान का अलग थलग पड़ जाना इसका सबूत है।

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