शिवराज सिंह पाखंडी :शिवकुमार शर्मा

-रमण रावल

मालवा में 1 जून से किसानों के सडक़ पर आकर सब्जी, अनाज, दूध की गांव से3 निकासी रोक देने की पूरजोर कोशिश भले ही अचानक लिया गया फैसला लगे, लेकिन हकीकत यह है कि इसकी तैयारी अरसे से की जा रही थी। यह काम राष्ट्रीय स्वयं संघ की शैली से गुपचुप यदि हुआ तो इसके पीछे संघ के पुराने तपे हुए नेता शिवकुमार शर्मा की रणनीति है। यह और बात है कि वे अब संघ की छवि से मुक्त अपनी पहचान बन चुके हैं और म.प्र. की भाजपा सरकार को लोहे के चने चबवा रहे हैं। किसान आंदोलन की बागडोर थामे राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा याने कक्काजी दो टूक कहते हैं कि प्रदेश के हालात यदि बिगड़े हैं तो इसके पीछे एकमेव शिवराजसिंह चौहान की अदूरदृष्टि है। साथ ही वे यह भी कहने से परहेज नहीं करते कि शिवराजसिंह चौहान पूरी तरह से धोखेबाज , फर्जी राष्ट्रवादी , नौटंकीबाज , भ्रष्ट व विफल मुख्यमंत्री हैं।

कक्काजी मंगवलार को शहर में थे और 6 जून को मंदसौर में आंदोलन करते हुए हुई 8 किसानों की हत्या(पुलिस गोलीबारी में मृत किसानों की हत्या करना ही वे निरुपित करते हैं) के संदर्भ में आगे की रणनीति को अंजाम देने इंदौर-उज्जैन के दौरे पर आये थए। जब उनसे पूछा गया कि किसान अचानक 1 जून से इतने उग्र प्रदर्शन पर कैसे उतारू हो गये तो वे बोले कि यह अचानक नहीं, सुनियोजित है। पहले की खामोशी तूफान का संकेत थी, जिसे प्रदेश सरकार समझ नहीं पायी तो यह उसकी विफलता है। देश के किसान को आजादी के बाद से ही लूटा जा रहा है, पहली बार वह चीख पड़ा तो सबको सुनाई दे रहा है।

म.प्र. के किसानों के संदर्भ में वे साफ तौर पर भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं। वे कहते हैं कि प्रदेश में जब 2003 में भाजपा की सरकार आयी तब कितान किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत करीब 2 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में था , जो अब 45 हजार करोड़ के कर्ज में डूब चुका है। यह ब्याज पर ब्याज वसूलने और हर साल फसल खराब होने के चलते लिये जा रहे नये कर्ज की वजह से हुआ है। वे बताते हैं कि 1880 में अंग्रेजों ने क्रूर शासक होते हुए भी बंगाल में दाम दुपट कानून बनाया था जिसके तहत कोई भी व्यक्ति मूलधन से दुगना ब्याज नहीं वसूल सकता है। जबकि अब सरकारें और राष्ट्रीयकृत बैंकें चक्रवृद्धि ब्याज की तरह वसूली कर रही है, जिससे किसान पीस रहा है।

कक्काजी कहतेे हैं कि किसान की खेत जोतने की लागत बढ़ती जा रही है, महंगाई तेज गति से बढ़ रही है, लेकिन उसकी उपज का मूल्य लगातार गिरता जा रहा है। उदाहरण के जरिये वे बताते हैं कि 1970 में 2 क्विंटल गेहूं मेें एक तौला सोना आ जाता था, जबकि अब 20 क्विंटल गेहूं में एक तौला सोना आता है। जबकि व्यापारिक हिसाब से 20 क्विंटल गेहूं में 10 तौला सोना आना चाहिये। इस असमानता के लिये पूर्ववर्ती व मौजूदा सरकारें दोषी हैं। जो भाजपा सरकार कृषि कर्मण अवार्ड लेती है, जिसके नेता रात-दिन खेती को मुनाफे का धंधा बना देने की दुहाई देते हैं, उनके राज में किसान को लागत मूल्य से कम पर उपज बेचने की विवशता क्यों है?

शिवकुमार शर्मा बताते हैं कि पंप में लगने वाला डीजल 15 पैसे लीटर से 60 रुपये लीटर हो गया, जो खाद की बोरी 60 रुपये में आती थी, वह 12सौ रुपये में मिल रही है, ट्रेक्टर के दाम 10 साल में दोगुने से अधिक हो गये, बीज, बिजली, मजदूरी , बैल की कीमत तक सबमें बेतहाशा वृद्धि हुई तो उपज के दाम भी आनुपातिक रूप से बढऩे चाहिये, लेकिन किसान के जागरुक नहीं होने, अपढ़, असंगठित होने से वह अपनी आवाज सही तरीके से सही जगह पहुंचा नहीं पाया और हर तरफ से लुटता रहा । जबकि उसकी फसल की बदौलत शहर का व्यापारी , खुदरा दुकानदार, बिचौलिया तक सब निहाल हो गये।

कक्काजी कहते हैं कि इसमें भी सबसे बुरी स्थिति म.प्र. के किसानों की है। उनका कहना है कि आंध्र, तमिलनाडू , कर्नाटक, तेलंगाना , केरल, पंजाब , हरियाणा में किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है, केवल 30 रुपये प्रतिमाह सर्विस चार्ज देना होता है, जबकि म.प्र. में 12 सौ रुपये प्रति हॉर्स पॉवर, प्रतिवर्ष के हिसाब से शु्ल्क वसूला जाता है। फिर किसान की फसल किसी एक वर्ष बिगड़ जाये तो उसकी भरपायी में 4-5 साल लग जाते हैं। इसके लिये अमेरिका की तरह व्यवस्था की जाना चाहिये। वहां चार तरह की प्रोत्साहन योजना है। ब्लू बॉक्स , रेड बॉक्स , यलो बॉक्स व एक्सपोर्ट सब्सिडी। इसके तहत शिक्षा, बीमारी, आकस्मिक संकट के समय सरकार किसान व उसके परिवार का पूरा खर्च वहन करती है। साथ ही निर्यात से विदेशी मुद्रा कमाने पर उपज के दाम के अलावा एक निश्चित रकम बोनस के रूप में भी मिलती है। इसलिये वहां किसान अपनी उपज का मूल्य तय करने में भी सक्षम है। जबकि हमारे यहां जो थोड़ी बहुत सब्सिडी सरकार देती भी है तो उसका अधिकांश हिस्सा भ्रष्ट अधिकारी हड़प लेते हैं।

एक सवाल के जवाब मेें कक्काजी बताते हैं कि हमारे देश में भी राष्ट्रीय कृषि निर्धारण आयोग है, लेकिन यह अस्तित्वहीन हो चुका है। वे खुद भी कभी इसके सदस्य थे, किंतु जब देखा कि वह किसानों के हितों का पोषण करने में सक्षम नहीं है तो सदस्यता छोड़ दी। वे बताते हैं कि इस आयोग को किसानों का फायदा कराने में कतई दिलचस्पी नहीं है, बल्कि उसके अधिकारी कहते हैं कि वे तो यह देखते हैं कि लोगों को सस्ता अनाज कैसे मिल सके?

कक्काजी ने आरोप लगाया कि प्रदेश भाजपा सरकार ने अपने लोगों के फायदे के लिये दिग्विजयसिंह के कृषिमंत्रित्व काल में बने मंडी अधिनियम को बदल कर किसान विरोधी कर दिया , जिसका एकमात्र उद्देश्य भाजपा के नेताओं को मंडी बोर्ड में काबिज कराना है, ताकि वे करोड़ो कमा सकें। इसके लिये पहले किसान के सीधे मंडी अध्यक्ष चुनने की व्यवस्था खत्म कर वार्डवार प्रतिनिधि चुनने का तरीका लाद दिया और वे अध्यक्ष चुनते हैं। इन प्रतिनिधियों को अध्यक्ष पद का प्रत्याशी करोड़ों रुपये खर्च कर खरीद लेता है , फिर मंडी अध्यक्ष बनकर करोड़ों कमाता है। तो जाहिर है कि वह किसानों का भला कैसे कर सकता है?

मौजूदा किसान आंदोलन के संबंध में उनका कहना है कि किसानों की स्पष्ट मांग है कि किसानों को अन्य राज्यों की तरह बिजली मुफ्त दी जाये, खाद, ट्रेक्टर, बीज , कृषि उपकरण, दवा के दाम घटायें जायें , तभी उपज की लागत घटेगी और किसान सस्ते दाम पर उपज बेचकर भी मुनाफा कमा सकेगा। केवल वादे करने से किसानों की समस्या का निदान नहीं निकल सकता। शिवराजसिंह चौहान ने करीब 6500 वादे तो कर दिये हैं, लेकिन पूरे एक भी नहीं हुए । मालवा के बाद महाकौशल के किसान भी आंदोलन की राह पर जाने वाले हैं, लेकिन मौजूदा हालातों के मद्देनजर इस पर पुनर्विचार किया जायेगा। कक्काजी ने शिवराजसिंह चौहान के इस्तीफे व म.प्र. की भाजपा सरकार को बर्खास्त करने की मांग भी राष्ट्रपति से की है। उन्होंने कहा कि जो सरकार मंदसौर के निहत्थे किसानों पर गोली चलाकर 8 निर्दोष लोगों की जान ले सकती है , वह कभी-भी किसानों के हक में फैसले नहीं ले सकती।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय किसान यूनियन, राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ व आम किसान यूनियन के बीच पूरी तरह से एकता व समन्वय है और इनमें से किसी ने भी किसानों की हड़ताल वापस लेने की अपील या समझौता नहीं किया है। सरकार अपने पिट्ठू संगठनों से अपील जारी करवाकर भ्रम फैला रही है, जिससे किसान अधिक आहत व उग्र महसूस कर रहा है।

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