मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार अपनी असफलताओं से घबराकर पार्टी के पुराने एजेंडों पर लौटने लगी है। लगभग चौदह सालों बाद भाजपा ने भोपाल के विलीनीकरण की वर्षगांठ मनाकर ये जताने की कोशिश की है कि वह कांग्रेस की पिछली भ्रष्ट सरकारों से अलग है। हालांकि भाजपा के ये प्रयास अब ट्रेन चूकने के बाद किए जाने वाले प्रयास ही साबित हो रहे हैं। इसकी वजह ये है कि सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर शुरु हो गई है। मालवा के किसानों ने भारतीय किसान संघ के बैनर तले दूध और प्याज सड़कों पर फेंककर जनता की नब्ज दर्शाने का काम किया है। जनता के बीच कांग्रेस के कुशासन की बदबू अभी तक नहीं गई है। इसी के चलते वो अपनी प्यारी सरकार को लगातार बर्दाश्त कर रही है। इसके बावजूद अभी ये नहीं कहा जा सकता कि चुनाव की बेला में भी जनता का ये धीरज बरकरार रह पाएगा।
भोपाल रियासत का भारत में विलीनीकरण आजादी के दो साल बाद हुआ ये बात आज की नई पीढ़ी को मालूम भी नहीं है। खुद शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के बोट क्लब पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि भोपाल के नवाब ने पाकिस्तान में मिलने की इच्छा के चलते हिंदुस्तान में विलीनीकरण स्वीकार नहीं किया था। तब भोपाल के नागरिकों ने आंदोलन चलाकर संघर्ष किया और फिर ये रियासत हिंदुस्तान का हिस्सा बनी। इस दौरान भोपाल के कई बहादुरों ने अपनी जान की बाजी लगाई। राजपूतों की तो एक पूरी टुकड़ी को धोखे से भोजन पर बुलाकर कत्ल कर दिया गया। भोपाल की खूनी बेगम ने अंग्रेजों की टुकड़खोरी करते हुए यहां के मुसलमानों और हिंदुओं की जायदाद हड़पी और उनका कत्ले आम किया। ये कहानियां राजा भोज की विरासत से कतई मेल नहीं खाती हैं। भाजपा और खासतौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बरसों से इस दिशा में काम करता रहा है। स्थानीय इतिहासकारों ने तथ्यों को संजोकर वे तमाम कड़ियां जोड़ीं जिनमें नवाब खानदान की गद्दारी की वजहें तलाशी गईँ हैं। अपना निजी वर्चस्व बनाने के लिए किस तरह अंग्रेजों के तलुए चांटे गए इसकी एक नहीं सैकड़ों कहानियां जनता के बीच सुनी सुनाई जाती हैं। नवाब के कुशासन को उचित साबित करने के लिए जो स्थानीय व्यापारी, कलाकार और पत्रकार उनकी जी हुजूरी में लगे रहते थे उनके वंशज आज भी कांग्रेस के बैनर तले सत्ता शीर्ष के करीब बने हुए हैं।
सवाल ये है कि आरएसएस को अपनी विचारधारा का पैतृक संगठन मानती रही भाजपा ने चौदह सालों तक इस एजेंडे को क्यों छुपाए रखा। वह कांग्रेस की भ्रष्ट सरकार की तर्ज पर प्रदेश के संसाधनों के दोहन में क्यों जुटी रही। आधारभूत संरचनाओं के विकास की दिशा में भाजपा ने पिछली सरकारों की तुलना में बेशकीमती काम किया है। इसके बावजूद उस विकास की तर्ज वही रही जो कांग्रेस की शैली में भी झलकती थी। भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के बीच विकास की जो कीमत अदा की गई उसके चलते आज भी प्रदेश में रोजगार के संसाधन विकसित नहीं हो पाए हैं। कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में प्रकृति का सहयोग यदि न मिला होता तो कृषि उत्पादन में भी मध्यप्रदेश कोई बड़ा बदलाव नहीं ला पाया है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि हम रोजगार बढ़ाने की दिशा में बड़ा काम करने जा रहे हैं। इसके बावजूद मध्यप्रदेश की आह चौदह सालों के बाद भी वाह में नहीं बदल सकी है।
विलीनीकरण दिवस के आयोजन में भी जन भावनाओं की ये तस्वीर साफ नजर आई।बाहुबली जैसी रिकार्डतोड़ सफल फिल्म की गायिका मधुश्री भट्टाचार्या का बेहतरीन आयोजन भी भोपाल की जनता को बोट क्लब पर नहीं खींच पाया। लोग एक अच्छे आयोजन से वंचित रह गए जबकि नगर निगम ने इस आयोजन के लिए रेडियो, टीवी, अखबारों पर भरपूर विज्ञापन भी चलाए। आयोजन के साथ साथ आतिशबाजी भी की गई जबकि रात के वक्त वन विहार के नजदीक इस तरह के आयोजन करना प्रतिबंधित है। इसकी एक वजह ये भी थी कि रमजान का महीना चल रहा है और इस दौरान मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए गीत संगीत के कार्यक्रमों में भाग लेने की इजाजत नहीं होती है। इबादत का दौर भले ही रात भर चलता हो पर लोग टीवी पर हो रहे प्रसारण भी नहीं देखते हैं। हाल में हमीदिया अस्पताल में मस्जिद बनाने की जिद में जो नौटंकी की गई उससे भी भोपाल की फिजा में नाराजगी फैली। जब दंगे के हालात पैदा कर रहे लोगों को पुलिस प्रशासन ने सख्ती से कुचला तो भी लोगों में ये दहशत थी कि कहीं बोट क्लब पर भी वही हालात न बन जाएं। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का ये बयान कि गदर मचाने वालों को कुचल दिया जाएगा। इससे भी लोगों ने आयोजन से दूरी बनाए रखना ही उचित समझा।
आखिर भाजपा पिछले चौदह सालों से क्या करती रही है जो वह जनता का वह विश्वास दुबारा नहीं पा सकी जो उसने दिग्विजय सिंह की भ्रष्ट सरकार के खिलाफ पाया था। वह अब तक अपने एजेंडे छोड़कर आखिर कहां कहां भटकती रही। जब देश ने तय कर दिया कि उसे सबका साथ सबका विकास कहने वाले हिंदुत्व से कोई गुरेज नहीं है। सांप्रदायिकता की कांग्रेस की परिभाषा से उसकी कोई सहमति नहीं। भाजपा का सौमनस्यवादी हिंदुत्व उसे स्वीकार है तो फिर भाजपा कांग्रेस की ऊल जलूल नीतियों की नकलपट्टी क्यों करती रही। नए चुनाव की ओर बढ़ती भाजपा को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
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