चीन के सरकारी मीडिया का कहना है कि चीनी माल पर प्रतिबंध लगाने के मामले में भारत केवल भौंक सकता है चीनी माल का मुकाबला नहीं कर सकता। देसी अंदाज में की गई इस टिप्पणी से पूरे हिंदुस्तान में नाराजगी का माहौल है। इसकी वजह ये है कि आम भारतीय केवल बात नहीं करता वह बदलाव के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। हिंदुस्तान के साधुओं की तपस्या और युद्ध के मैदान में मौत को गले लगा लेने वाले रणबांकुरों की बहादुरी देखकर हिंदुस्तानियों की असीमित शक्तियों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इसलिए ये बयान आम भारतीयों को कचोट रहा है। चीन का सरकारी मीडिया हो या स्वयं सरकार किसी को ये मुगालता नहीं पालना चाहिए कि हिंदुस्तान कुछ नहीं कर सकता। इस तरह का ओछा बयान देने से ज्यादा नुक्सान चीन का ही होने वाला है। यदि सवा सौ करोड़ हिंदुस्तानियों ने ठान लिया तो वे चीन के माल की होलियां जलाकर पूरा कारोबार ठप कर देंगे।
चीनियों को नहीं भूलना चाहिए कि अंग्रेजों को भगाने के लिए इसी हिंदुस्तान में विदेशी कपड़ों की होलियां जलाई जाती रहीं हैं। ये बात अलग है कि आजादी के बाद नेहरू इंदिरा की धूर्त कांग्रेस ने देश के लहू में मक्कारी का जहर भर दिया है। एक महान देश को जातियों, संप्रदायों में बांट दिया है। आरक्षण के जहर से प्रतिभाओं को सरेराह कत्ल किया है। सुअर सरकारीकरण थोपकर देश की मुद्रा को भिखारी बना दिया है। आज अड़सठ रुपए का डालर बिके तो जाहिर है कि आम हिंदुस्तानी कितनी भी मेहनत क्यूं न कर ले पर वह चीन के बराबर सस्ता माल नहीं दे सकता। चीन की मुद्रा इतनी ताकतवर है कि वह कच्चे माल को बहुत थोड़ी लागत लगाकर बाजार में फेंक देता है। अब इतने सस्ते माल का मुकाबला भला कोई भी देश कैसे कर सकता है। चीन ने इसी हिकमत के बल पर न केवल हिंदुस्तान बल्कि दुनिया के तमाम देशों के बाजारों को अपने माल से पाट दिया है। वो ये सब केवल इसलिए कर सका क्योंकि वहां लोकतंत्र नहीं है। आम आदमी को मनचीता करने की आजादी नहीं है। जबकि हिंदुस्तान में तो जितने मुंह उतनी बातें। हर नागरिक शहंशाह है। राजतंत्र के दौर में एक राजा होता था जो यदि अच्छा हो तो पूरा राज्य सुगंधित विकास से भर जाता था और यदि मूर्ख हो तो कुशासन का अभिशाप उस राज्य को दूसरे शासक के हाथों विजित करा देता था। चीन का ये भड़काऊ बयान उस दौर में आया है जब हिंदुस्तान की महान जनता ने कांग्रेस के कुशासन को उखाड़ फेंका है। उसने उम्मीदों की एक नई सुबह के इंतजार में सत्ता की बागडोर नरेन्द्र मोदी जैसे सशक्त नेतृत्व के हाथों में सौंपी है।
नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की उस पाठशाला में पले बढ़े हैं जिसे संघ के तपोनिष्ठ स्वयंसेवकों ने अपने खून पसीने से सींचा है। नरेन्द्र मोदी जैसे हजारों लाखों स्वयंसेवक आज न केवल भारतीय जनता पार्टी बल्कि देश के अन्य राजनैतिक दलों का भी संचालन कर रहे हैं। पराजित होकर सत्ताच्युत हो चुकी कांग्रेस में भी संघ की ज्वाला में तपे निखरे स्वयंसेवक मौजूद हैं। ये वो लोग हैं जो भारत माता की आराधना करते हैं। ये वो लोग हैं जो देश के लिए मर मिटने में पल भर का वक्त भी नहीं लगाते हैं। यही वजह है कि हम चीन के इस मुगालते भरे कटाक्ष का स्वागत करते हैं। हम चीनी मीडिया को इस बात के लिए भी धन्यवाद देते हैं कि उसने हमें झकझोरने का काम तो किया। यही बात यदि भारतीय मीडिया के पत्रकार बंधु कहते तो सत्ता के मद में डूबे स्वयंभू देशभक्त उन पर तरह तरह की तोहमतें थोप देते। कोई उन पर वामपंथी, नक्सली, सनकी, बिका हुआ होने का लेबल चिपका देता तो कोई विपक्षी कांग्रेसियों की शह पर दिया गया बयान बताकर खारिज करने का श्रम करके अपने आकाओं से नंबर बढ़वाने का जतन करने लग जाता। ये अच्छी बात है कि ये बयान चीन के मीडिया ने दिया है। उसने न केवल भारत को भौंकने वाला लाचार देश बताया बल्कि ये भी कहा कि नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान का कोई मतलब नहीं। इसकी वजह उसने बताई कि भारत में भारी भ्रष्टाचार है। चीनी मीडिया ने अपने निवेशकों को भी सलाह दी है कि वे भारत में कतई निवेश न करें।
चिंताजनक बात तो ये है कि चीनी मीडिया का ये बयान तब आया है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे कई नेता चीन की जमीन पर जाकर वहां के उद्योगपतियों को निवेश का न्यौता देते फिर रहे हैं। लगता है कि नेताओं के ये प्रयास चीन के उद्योगपतियों और सरकार का भरोसा नहीं जीत पाए हैं। ये बात भी सही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह विश्व पटल पर पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए चीन को सवालों के घेरे में खड़ा किया उससे भी चीन बौखलाया हुआ है। अमेरिका से बढ़ती नजदीकियों से भी चीन के रणनीतिकार परेशान महसूस कर रहे हैं। इसके बावजूद चीन के मीडिया ने जो बात कही है उसके लिए भारत के शासकों को अपने गिरेबान में जरूर झांकना पड़ेगा। कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री पी.व्ही.नरसिंम्हाराव और डाक्टर मनमोहन सिंह ने कड़ा दिल करके देश को नेहरू इंदिरा काल की गद्दार नीतियों से बाहर निकालने का भरपूर जतन किया। वे खुलकर तो नहीं कह सकते थे कि इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण और अंधे सरकारीकरण को थोपकर देश को गरीबी के दलदल में धकेल दिया था। इसलिए उन्होंने कार्पोरेटीकरण को बढ़ावा देकर एक समानांतर अर्थव्यव्यवस्था खड़ी करने का प्रयास किया। ये बात अलग है कि इससे आम नागरिकों पर दोहरा बोझ पड़ने लगा है। एक ओर तो वे कार्पोरेटीकरण जनित मंहगाई की मार झेलने के लिए खुले बाजार के हवाले कर दिए गए हैं वहीं राष्ट्रीयकरण के नाम पर थोपे गए अनुत्पादक सरकारी तंत्र को भी पालने पोसने के लिए मजबूर हैं। कांग्रेस के पतन के बाद जरूरत थी कि भारत जल्दी से जल्दी इस थोपे गए सरकारीकरण के जाल से खुद को मुक्त कर लेता।
कांग्रेस की विदाई के बाद भाजपा की सरकारें भी कमीशनखोरी के चक्कर में कांग्रेस की ही पूंछ पकड़कर चलने लगीं। इसलिए देश में एक बार फिर निराशा का माहौल फैलने लगा है। इससे निजात दिलाने के लिए भाजपा के नेता खोखले बयानों की राजनीति कर रहे हैं। वे जनता को वैचारिक तौर पर राहत महसूस कराने का प्रयास कर रहे हैं जबकि इससे कोई समाधान निकलने वाला नहीं है। ये बात दुनिया भर के निवेशकों को भी मालूम है। यही वजह है कि जापान जैसा मित्र देश और उसके उद्योगपति भी भारत में निवेश करने से कतरा रहे हैं। धूर्त सरकारीकरण से घबराकर जापान की संस्था ने मध्यप्रदेश में मैट्रो रेल की जायका जैसी संस्था को भी कर्ज देने के मामले में चुप्पी साध ली है। चीन का मीडिया क्या बोलता है हम उसकी चिंता न भी करें तो हमें अपने हालात पर गौर जरूर करना होगा। कर्ज लेकर चलने वाली विकास योजनाओं को हम यदि विकास बताते रहेंगे तो फिर हमारी शुतर्मुर्गी भूमिका देश को एक नए झमेले में डाल देगी। यदि हम कांग्रेस को गाली देते रहे और युवाओं को रोजगार मुहैया नहीं करा सके तो ध्यान रखें हम एक नई उथलपुथल को पनपने का अवसर दे रहे हैं। हिंदुस्तान के शासकों और उनकी भोंदू नौकरशाही को आत्मचिंतन करना ही होगा। उन्हें ध्यान रहे कि ये दौर पूंजीवाद का है और कानून का डंडा केवल शासकों के हाथ का नौकर नहीं होता।
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