लोकतंत्र की आड़ में छद्म प्रेम का स्वांग रचती राहुल कांग्रेस

नमन नमन में भेद है बहुत नमें नादान।
दगा बाज दुणा नमैं चीता चोर कमान।।

भावार्थ- अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग ढंग से नमन करते हैं। अतः सबके नमन करने में भिन्नता होती है, धोखेबाज , चोर और कमान और भी ज्यादा झुकते हैं। किन्तु इन सबका झुकना किसके लिए लाभकारी होता है।चीते का, चोर का और कमान का झुकना अनर्थ से खाली नहीं होता है । चीता हमला करने के लिए झुककर कूदता है । चोर मीठा वचन बोलता है, तो विश्वासघात करने के लिए । कमान (धनुष) झुकने पर ही तीर चलाती है ।

रहीम के दोहे जिन्होंने पढ़े हैं या सुने हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि कड़वा सच बोलने वाला भले ही लोगों को पसंद नहीं होता लेकिन वो हमें कुछ न कुछ सिखा जरूर देता है। जबकि मीठा बोलकर पीठ में छुरी घोंपने वाला हमेशा दुखदायी होता है। गुजरात में युवा पीढ़ी को बहकाने में सफल राहुल कांग्रेस और उनके सहयोगी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हल्की टिप्पणियां करने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री को राज्य के चुनाव में आकर हस्तक्षेप करना शोभा नहीं देता। आज तक के इतिहास में किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह राज्य के चुनावों में हस्तक्षेप नहीं किया। वे देश का संचालन करते तो ज्यादा अच्छा होता।

ये ज्ञान वे ही बांट रहे हैं जो जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कारण ही गुजरात में उनकी घुसपैठ का प्रयास असफल हुआ है। गुजरात के बहाने कांग्रेस और भाजपा विरोधी राजनीतिक दल देश में एक बार फिर अराजकता भरा कुशासन देने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें मालूम है कि भाजपा की सरकारों ने आधारभूत संरचनाओं के विकास के साथ भारत के विकास का रोडमेप तैयार कर लिया है। जो काम आजादी के बाद से देश में होना था उसकी शुरुआत पिछले एक दशक में हुई है। अब जबकि देश विकासपथ पर गतिमान होने को अग्रसर है तब कांग्रेसियों का प्रयास है कि सरकार की कमान छीन ली जाए । कांग्रेस और उसकी आड़ में देश पर लूट का साम्राज्य स्थापित करने वाली ताकतों ने आजादी के बाद से देश में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जो साम्प्रदायिकता के विष बीज बोए उसके चलते आज हिंदुस्तान कई समस्याओं से घिर गया है। जातिवाद को देश की सच्चाई बताने वाले बुद्धिजीवियों ने इसी आड़ में जातिवादी राजनीति के कई दांव खेले। जबकि वे विकास की आंधी से जातिवाद की इस सच्चाई की तस्वीर बदल सकते थे।

दलित राजनीति की आड़ में देश के संसाधनों पर कब्जा करने वाले षड़यंत्रकारियों ने लूटमार का जो माहौल बनाया है उससे पूरी दुनिया के बीच हिंदुस्तान एक मूर्खतापूर्ण कवायद में घिरा देश बनकर रह गया है। ये भारत ही है जिसमें दलित होने के कारण कोई व्यक्ति योग्य व्यक्ति से आगे निकल सकता है। यदि दलितों पर इतिहास में अत्याचार हुए तो क्या दलित होने पर किसी को अत्याचार करने की छूट दी जा सकती है। ये परिपाटी कांग्रेस ने ही देश में शुरु की। आज ये विषबेल इतनी फैल गई है कि जो इसमें काटछांट करने का प्रयास करे वही सत्ता से वंचित कर दिया जाए। गुजरात में पाटीदारों का आंदोलन इसकी मिसाल है। जो पाटीदार आर्थिक रूप से समृद्ध हैं वे आरक्षण की मांग लेकर सड़कों पर निकल पड़ें इससे ज्यादा बड़ी समस्या क्या हो सकती है। वो भी ये जानते हुए कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश में पचास फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। देश के सरकारी पदों पर पचास फीसदी लोग केवल इसलिए काबिज कर दिए जाएं कि वो दलित हैं इससे ज्यादा बेहूदा फैसला कौन सा हो सकता है। ये तो संतोष की बात है कि केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने चुनाव से पहले साफ कह दिया था कि पाटीदारों को संविधान के दायरे में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। जबकि सत्ता पर काबिज होने के फेर में झूठ बोलते हुए कांग्रेस हार्दिक पटेल और उनके सहयोगियों के साथ खड़ी रही। ये बेशर्मी नहीं तो क्या है।

कांग्रेस ने जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश राठौर और हार्दिक पटेल के माध्यम से बेरोजगारों के बीच जो जातिवादी कार्ड खेला उसे अनुभवहीन युवाओं के बीच भरपूर समर्थन भी मिला। अब इस बात पर यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि गुजरात को हम बड़ी मुश्किलों से जातिवादी दायरे से बाहर निकाल सके हैं, कृपया विकास के इस माहौल को पटरी से न उतारें तो इसमें कौन सी गाली छिपी है। सख्त सरकार से नाराज मीडिया इसे यदि प्रधानमंत्री की असहिष्णुता या बदमिजाजी बताने जुट जाए तो फिर जनता को हक है कि वो इस मीडिया को दौड़ा दौड़ाकर सुधारे।

गुजरात में कांग्रेस और भाजपा विरोधियों ने सत्ता संधान का जो मार्ग चुना वो अनैतिकता की गली से गुजरकर जाता है। कांग्रेस को पूरा हक है कि वो जनता के बीच सेवाकार्य करके विश्वास अर्जित करे और फिर सत्ता के लिए खुद को विकल्प के रूप में प्रस्तुत करे। लेकिन कांग्रेस ने ये नहीं किया। उसने संगठन को आऊटसोर्स करके खरीदा और फिर विद्रोह भड़काकर चोर दरवाजे से सत्ता पाने की चालें चलीं। इसे कानून की भाषा में राजद्रोह कहा जाता है। राजतंत्रों में इस करतूत की सजा मौत होती है। लोकतंत्र के नाम पर झूठी पैरवी करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती। विरोधी दलों को जनता की वाजिब समस्याओं को लेकर संघर्ष करने की इजाजत है पर फ्रेब्रीकेटेड समस्याओं के आधार पर देश को गुमराह करने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती।

भाजपा ने खुद अब तक जो विकास की जो राह चुनी उसमें कांग्रेस की बदइंतजामियों भरी नीतियों को जारी रखा है। इसलिए वो खुलकर कांग्रेस का विरोध नहीं कर पा रही है। भाजपा कांग्रेस को बंद करने की जो सोच रखती है इसके लिए उसे भी आगे बढ़कर कांग्रेस की विनाशकारी नीतियों को कुचलना होगा। तभी जाकर वो एक नए भारत का विकास कर सकती है। भाजपा के सलाहकारों को इस पर गौर करना होगा। देश की जनता ने भाजपा को अपनी समस्याओं का निराकरण करने के लिए सत्ता में भेजा है। भाजपा यदि वो बदलाव नहीं करती है तो फिर जनता का प्रयास कारगर नहीं हो सकेगा। जाहिर है कि जनता इस बैचेनी का हल कांग्रेस में ढूंढ़ेगी जो एक नई मुसीबत को ही जन्म देगी।

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