कांग्रेस का नया राहुल सोच पुरानी


चौदह साल के इंतजार के बाद आखिर राहुल गांधी ने कांग्रेस की बागडोर संभाल ही ली। वंशवादी परंपरा के अधीन चलने वाली कांग्रेस एक बार फिर अपने ब्रितानी चहेतों को खुश करने चल पड़ी है। राहुल गांधी ने इसलिए पार्टी का कार्यभार संभालते समय अंग्रेजी में भाषण दिया। हालांकि समर्थकों को बांधे रखने के लिए उन्होंने हिंदी में भी वही भावनाएं व्यक्त कीं। उनके भाषणों का बिंदु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी ही थी। राहुल गांधी ने कहा कि हम प्रेम फैलाते हैं। भाजपा लोगों को बांटती है। हम धर्म निरपेक्ष हैं और दूसरी पार्टियां साम्प्रदायिक हैं.भाजपा आग लगाती है हम बुझाते हैं। बरसों से कांग्रेस इसी घिसी पिटी सोच पर चलती रही है। कांग्रेस की स्थापना ही भारत में अंग्रेजी राज को बचाने के लिए की गई थी। कोशिश थी कि भारतीयों की राजनीतिक पार्टी के माध्यम से अंग्रेज जनता की आवाज को समझ सकेंगे और उनके अनुसार अपनी नीतियां बदल सकेंगे। बहुत सालों तक यही चलता रहा। बाद में जब सुभाष चंद्र बोस और अन्य क्रांतिकारियों ने गली कूंचों में अंग्रेजों को मारना पीटना शुरु कर दिया तब अंग्रेजों ने कांग्रेस के नेतृत्व को आगे रखकर सत्ता का हस्तांतरण कर दिया। जिसे कांग्रेस ने आजादी का नाम दिया। इसी आजादी का सेहरा गांधीजी के सिर बांध दिया गया। कवि प्रदीप ने इस पर गीत लिखा, दे दी हमें आजादी बिना खडग़ बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। कांग्रेस के इसी पाखंड से नाराज होकर नाथूराम गोडसे ने गांधी को गोली मार दी। गोडसे के एक आतंकी कृत्य ने आजादी के संग्राम की हकीकत पर जो पर्दा डाला उससे कांग्रेस देश में सात दशकों तक शासन करती रही। उस कांग्रेस को न गांधी से वास्ता था और न ही वो गांधीवादी मूल्यों से कोई सरोकार रखती थी। उसने जाति और धर्म के आधार पर देश को बांटने की नीतियां बनाईँ। दलितों को बांटा, युवाओं को बांटा, महिलाओं को बांटा, हिंदुओं को बांटा मुसलमानों को बांटा। इस तरह खंड खंड में बंटा हिंदुस्तान आज आपसी वैमनस्य के जाल में ही उलझा पड़ा है। जब भी कांग्रेस के इस चरित्र पर बात की जाती है तो तथाकथित बुद्धिजीवी असहिष्णु होने का आरोप लगा देते हैं। कांग्रेस अपने इस परखे हुए फार्मूले को छोडऩा ही नहीं चाहती है। वह शैतान पर कंकर मारने की अपनी नीति को ही अपना तारणहार मानती है। इसीलिए उसने गुजरात में युवाओं को भरमाने की रणनीति अपनाई। हालिया चुनाव में जब भाजपा ने देखा कि बाईस साल के युवाओं ने जिन्होंने कांग्रेस का शासन कभी देखा नहीं वे ही भ्रमित हो चले हैं तो उसने अपनी पुरानी रणनीति को सामने रखकर कांग्रेस की कलई खोलना शुरु कर दी। इसीलिए आज राहुल गांधी की ताजपोशी के वक्त सोचा जा रहा था कि वे किन्हीं अलग मुद्दों पर अपनी बात कहेंगे। लेकिन उन्होंने वही रटी रटाई लीक को ही पीटा। बार बार वे कहते रहे कि भाजपा लोगों को लड़ाती है। हमारी नीति प्रेम फैलाना है। जितनी बार वे ये शब्द दुहराते थे उतनी बार कांग्रेस और गांधी परिवार का खोखला देश प्रेम उजागर होता जाता था। सोनिया गांधी ने कहा कि बीस साल पहले आपने मेरे पति की हत्या के बाद मुझे पार्टी संभालने की जवाबदारी सौंपी थी। तबसे हमने देश की जनता की बेहतरी के लिए कई सफल योजनाएं बनाई हैं। देश की जनता को ज्यादा पारदर्शिता वाला शासन मिला। इसके बावजूद वे ये नहीं बोलीं कि हमने देश की अर्थव्यवस्था में क्या तब्दीली लाई। दरअसल पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने वित्तमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह के माध्यम से विश्व बैंक की नीतियों को लागू किया था। मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था की नीति वर्ष 1991 में लागू कर दी गई थी। इसके बावजूद कांग्रेस की किसी सरकार में दम नहीं था कि वो खुलकर कह सके कि अब तक की कांग्रेस की नीतियों ने देश को गरीबी के दलदल में धकेला है। आज भी वे ये नहीं कह रहे कि बैंकों का धन उलीचने में उनकी पार्टी ने क्या आपराधिक काम किया। बैंकों पर दबाव डालकर फर्जी कंपनियों को करोड़ों रुपयों के लोन दिला दिए । जनता का धन लूटकर विजय माल्या जैसे लोग ब्रिटेन जाकर बस गए। अपनी बचत के लिए उन्होंने भाजपा भी ज्वाईन की लेकिन उनकी पोल अंतत: खुल ही गई। आज भी कांग्रेस खुलकर नहीं कह रही है कि वो देश की पार्टी नहीं है। उसने ऐसा छद्म आवरण ओढ़ रखा है कि वो खुद को देश का माईबाप बताने से नहीं चूकती। उसका स्थान लेने वाली भाजपा भी उसका खुलकर विरोध नहीं करती क्योंकि वो भी उन्हीं नीतियों पर चलती रही है जिनसे कांग्रेस अपनी कुर्सी बचाती रही । आज एक बार फिर जब नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों के कारण भाजपा को जनता की नाराजगी झेलना पड़ रही है तब भाजपा को कांग्रेस की लोकप्रियता वादी नीतियों की जरूरत महसूस हो रही है। शायद यही कारण है कि भाजपा की सरकारों ने धड़ाधड़ कर्ज लेकर जनता को खुश करने वाली नीतियों पर अमल शुरु कर दिया है। अब वो भी सरकारी नौकरियां बांटने चल पड़ी है,जबकि सरकारीकरण देश पर अभिशाप साबित हो चुका है। मुनाफे वाली कंपनियों को खुश करने के लिए काल्पनिक योजनाओं पर अमल शुरु कर रही है। उसे सत्ता में बने रहने के लिए लगातार चुनाव जीतना हैं। इसके लिए वो तमाम फार्मूलों को आजमा रही है। जाहिर है कि कांग्रेस और भाजपा की नीतियों में टकराव के कारण आने वाले समय में जनता को ठगने वाली नीतियां ही अधिक बनेंगी। जिसका पाप राहुल गांधी के सिर ही बंधेगा।

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