आजादी की कहानियों में आसरा तलाशती कांग्रेस

सल्तनत चली गई है लेकिन लोग अभी भी खुद को सुल्तान समझ रहे हैं। यह कहकर जयराम रमेश ने आज की कांग्रेस को नसीहत देने की कोशिश की है। गुजरात में अहमद पटेल का राज्यसभा चुनाव में जीत जाने पर जश्न मना रहे कांग्रेसी ये सोचने तैयार नहीं हैं कि उनकी नाव में छेद हो चुका है। इस जीत को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की असफलता बता रहे समाचार माध्यम भी घटना का केवल एक पक्ष देख रहे हैं। जो मारे सो मीर के सोच में ढले चैनलों के सूत्रधार कांग्रेस की आतिशबाजी की चमक में अहमद पटेल के दरकते किले की झिरी नहीं देख पा रहे हैं। कांग्रेस के पास अपने 57 विधायक थे। एक राकांपा, एक जदयू और निर्दलीय समर्थन के साथ उसके पास 61 मतों का समर्थन था। इसके बावजूद पटेल को मात्र 44 वोट मिले। लगभग डेढ़ मतों से उनकी नाक बची। अहमद पटेल ने जब नामांकन भरा तो छह विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था। गुजरात में कांग्रेस 33 सालों से सत्ता से बाहर है। अंतिम बार 1985 में उसकी सरकार बनी थी। इस बार अहमद पटेल की मनमानी के चलते ही गुजरात के दिग्गज नेता शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी छोड़कर तटस्थ रुख अपना लिया था। जाहिर है कि पटेल ने सीट जरूर बचा ली है पर उनकी कुर्सी के पाए दरक गए हैं। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि अमित शाह के प्रयास निष्फल हो गए हैं।गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने तो कहा भी है कि कांग्रेस भले ही जीत गई हो पर उसकी जीत नमक की तरह खारी है।अमित शाह को फर्जी मुठभेड़ कांड में फंसाने का षड़यंत्र अहमद पटेल का ही था जाहिर है कि इस चुनाव ने उनकी सत्ता की चूलें हिला दी हैं।इससे अहमद पटेल का काले धन का साम्राज्य धराशायी होने की भी शुरुआत हो गई है। इस चुनाव को भी भाजपा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने जा रही है। कांग्रेस के नेतागण आज भी हिंदुस्तान के बादशाह की तरह बर्ताव कर रहे हैं। वे भ्रष्टाचार और परिवारवाद के दागों से मुक्त होने का जतन नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के फार्मूले आऊटडेटेड साबित हो चुके हैं। डॉ.मनमोहन सिंह के उदारीकरण लागू करने के पूंजीवादी सिद्धांत ने पार्टी के पुराने ढांचे को धराशायी कर दिया है। यही वजह है कि उसके नेतागण अपने अतीत को मुकुट बनाकर जीत का ख्वाब देखने लगे हैं।

मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ये हिसाब बताने तैयार नहीं कि उन्होंने भाजपा की सरकार को किस तरह कहां कहां घेरा और क्या सफलता पाई। इसकी तुलना में वे आजादी के संग्राम की शान बघार रहे हैं।कांग्रेस के नेतागण बार बार कहते नहीं अघाते कि उनकी पार्टी और महात्मा गांधी ने आजादी दिलाई है। जबकि हकीकत ये है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उपनिवेश वादी व्यवस्था भंग होनी शुरु हो चुकी थी,और आर्थिक साम्राज्यवाद का दौर शुरू हो गया था। इसी हवा में भारत के साथ म्यांमार को भी आजादी मिली। जबकि चीन तो दो साल बाद पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाईना बना। लेकिन आज भारत की अर्थव्यवस्था दो ट्रिलियन डालर की है और चीन की नौ ट्रिलियन डालर की । चीन ने 1981 से 2013 के बीच 63 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाल लिया था। जबकि भारत में आज भी जन विद्रोह रोकने के लिए सब्सिडी आधारित हितग्राही मूलक योजनाएं चल रहीं हैं। जो कांग्रेसी बार बार अहसान जताते फिरते हैं कि आजादी के वक्त सुई भी देश में नहीं बनती थी उन्हें गौर करना चाहिए कि राजीव गांधी के तकनीक आयात करने के फैसले ने देश को कर्ज के दलदल में धकेल दिया । तकनीक खरीदने की होड़ ने देश की आत्मनिर्भरता की प्रक्रिया को लकवाग्रस्त बना दिया।

कांग्रेसी नीतियों के पाप की गठरी चीन से तुलना करते वक्त एक झटके में खुल जाती है। चीन के यीवु शहर में उत्पादन की ढेरों इकाईयां लगाईं गईं हैं। यीवु शहर की इन इकाईयों में 2013 तक तीन लाख साठ हजार भारतीय व्यवसायियों ने अपना पूंजी निवेश किया और वहां माल बनाकर भारत भिजवाया। मोदी सरकार तो इसके बाद 26 मई 2014 को सत्ता में आई।इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया नारे ने इन उद्योगपतियों की नींद उड़ा दी है। यही वजह है कि चीन का मीडिया डोकलाम के बहाने नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहा है। आज यीवु दुनिया का सबसे बड़ा थोक बाजार है। यहां करीब आठ लाख दूकानें हैं। चीनी कोई भी सौदा नहीं छोड़ते। वे सस्ता भी माल बनाते हैं और मंहगा भी। चीन ने पहले माल बनाया फिर उसकी मार्केटिंग की भी व्यवस्था की। आज वहां इंपोर्टरों और फैक्टरी मालिकों को खरीदार ढूंढने का काम बहुत सरल है। चीन ने जो स्पेशल इकानामिक जोन बनाए वे उसके विकास में मील का पत्थर बन गए। विकास के प्रस्ताव न तो भारत की संसद की तरह अटके न ही भूमि अधिग्रहण की समस्या आड़े आई। वहां उजाड़े गए लोगों के पुनर्वास की भी चिंता नहीं की जाती है। विकास की राह में विरोध और बहस की कोई गुंजाईश नहीं है। आर्थिक निवेश को विचारधारा और राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाता है। चीन ने अपने सबसे बड़े बांध का निर्माण मात्र अठारह साल में पूरा कर लिया और उससे बिजली भी बनाने लगा। जबकि भारत में नर्मदा बांध परियोजना 27 साल बाद पूरी हुई पर अभी तक उसे पुनर्वास के नाम पर अड़ंगों का सामना करना पड़ रहा है। जो लागत बढ़ी और घाटा सहना पड़ा उसका तो कोई हिसाब ही नहीं।

चीन के विकास में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी है जबकि भारत में केवल 34 फीसदी महिलाओं को हम काम दे पाए हैं। पुरुष युवाओं की बेरोजगारी ही हमारे लिए बड़ा सिरदर्द बनी हुई है। ये सब कांग्रेस की नीतियों की असफलता की कहानियां कहते हैं। मोदी सरकार के पहले तक भाजपा की सरकारें भी कांग्रेस की इन्हीं नीतियों की पिछलग्गू बनी रहीं हैं। मध्यप्रदेश की कांग्रेस यहां की भाजपा को इसलिए कोस रही है कि उसने 9 अगस्त को आयोजित ….. युवा संवाद… कार्यक्रम के पोस्टरों में भारत छोड़ो का नारा देने वाले महात्मा गांधी की तस्वीर नहीं छपवाई। जबकि ये आयोजन मध्यप्रदेश सरकार का था भारतीय जनता पार्टी का नहीं। ये बात सही है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इंग्लैंड भारत से अपने हाथ खींच रहा था तब उसने अपने मन माफिक सहयोगियों को कांग्रेस में तलाशा था। कांग्रेस के नेताओं की दरियादिली की वजह से ही अंग्रेजों ने यहां के कमाऊ उद्योगों में निवेश किया और आज तक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की आड़ में यहां से दौलत उलीच रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तो आजादी के समय शैशव अवस्था में था और देश के लोगों के बीच अपना जनाधार तलाश रहा था। कांग्रेस की मौकापरस्त राजनीति के जूझते हुए आरएसएस के समर्थन वाली भाजपा को लगभग सत्तर साल लग गए और आज भी वह कांग्रेस के नेताओं की ओर से लगाए जाने वाले लांछनों का सामना कर रही है।ये बात सही है कि भाजपा के भीतर एक बड़ा धड़ा कांग्रेस परस्त नीतियों की पूंछ पकड़कर चल रहा है।इसके बावजूद देश के स्तर पर भाजपा ने राजनीतिक दिशा बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है और संतोष की बात ये है कि देश का युवा उसके साथ खड़ा है। कांग्रेस के नेता यदि वर्तमान में जीने के बजाए यूं ही अतीत को टटोलते रहेंगे तो जाहिर है वे अपनी पार्टी को अजायबघर ले जाएंगे। इन हालात में भाजपा विकास की नई दिशा का कितना लक्ष्य पा सकेगी कहा नहीं जा सकता।

Print Friendly, PDF & Email

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*