किसान आंदोलन पर उलटा पड़ा कांग्रेस का दांव

भोपाल(पीआईसीएमपीडॉटकॉम)। मध्यप्रदेश विधानसभा में आज नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने जब किसान आंदोलन पर स्थगन लाने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया तब सभी समझ रहे थे कि अब भाजपा सरकार को खासी परेशानी होगी लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चर्चा कराने का ये प्रस्ताव तत्काल स्वीकार कर लिया। इसके बाद भाजपा के नेताओं किसानों के लिए किए गए अपनी सरकार के जो कामकाज गिनाए उसके बाद तो सारी बाजी पलट गई। हर नेता ने कांग्रेस की सरकारों की खामियां गिनाईँ और किसान आंदोलन की सारी हकीकत सदन में उजागर कर दी। पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव ने तो किसान आंदोलन पर कांग्रेस को आड़े हाथों लिया।

उन्होंने कहा कि ये आंदोलन सिर्फ उसी हिस्से में था जहाँ पर अफीम का उत्पादन होता है, डोडा चूरा का उत्पादन होता है, हमारे बुन्देलखण्ड के 5 जिलों में कहीं नहीं है, भिण्ड जिले में नहीं है, ग्वालियर चंबल संभाग में कहीं नहीं है. यह स्पष्ट रूप से इस बात का प्रतीक है कि पूरा का पूरा मामला तस्करों के द्वारा प्रेरित था, जिसके लिए यहाँ पर स्थगन लाया गया, उनकी मदद के लिए स्थगन लाया गया, मेरा आरोप है.उन्होने कहा अलाभकारी मूल्य की बात हो रही है. किसान का भावनात्मक शोषण कर रहे हैं. अध्यक्ष महोदय, किसान बहुत भावुक होता है और भावुक होने के कारण ही उसे लोग प्रेरित करते हैं. मैं एक जगह अपने क्षेत्र में सुन रहा था, एक करोड़ रुपये की मुख्यमंत्री जी ने घोषणा की, कुछ लोग हमारे ही क्षेत्र में कहने लगे एक करोड़ मिल जाएँगे तुम लटक जाओ और वे दूसरी पार्टी के लोग थे, मैं उनके बारे में कुछ कहना नहीं चाहता. क्या उनको ऐसा कहना चाहिए? अध्यक्ष महोदय, मैं इस बात को कहना चाहता हूँ कि यदि हम वास्तव में किसानों के हितैषी हैं और हम वास्तव में किसान हैं, तो अपनी सब्जियों को, अपने खाद्यान्न को, अपने दुग्ध उत्पादन को, अपने दूध को, हम सड़कों पर नहीं बहा सकते, हम नालियों में नहीं फेंक सकते और सब्जियों को हम कुचल नहीं सकते. अध्यक्ष महोदय, सरकार ने किसानों के लिए क्या नहीं किया? साढ़े चार हजार करोड़ रुपये पिछले साल फसल बीमा का मिला, साढ़े चार हजार करोड़ रुपया, लगभग राहत राशि का मिला. नौ हजार करोड़ रुपये की राशि पिछले साल किसानों के लिए मिली. आपकी सरकार के समय 100-100, 50-50, रुपये के चेक मिलते थे और जहाँ तक फायरिंग की बात है, फायरिंग की बात के लिए आप याद कर लो मुलताई की 1998 की घटना, 29 किसान मारे गए थे और वाहवाही करने के लिए तो इन्होंने असत्य एनकाउण्टर तक किसानों का किया. अध्यक्ष महोदय, शिवपुरी जिले में रामबाबू गडरिया को मारने की एक घटना हुई. तमगे लगा लिए, प्रमोशन हो गया, आउट आफ टर्न और अध्यक्ष महोदय, जिनको मारा था, वह निकले 3 किसान, खेत में पानी बराने के लिए जा रहे थे, उनके लिए मार दिया गया और तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने, सच है कि नहीं? आप बताएँ. सच है कि नहीं वह 3 किसान मारे गए थे? और उसके बाद में टी.आई. को डी.एस.पी. और डी.एस.पी. को एस.पी. बना दिया, सार्वजनिक सम्मेलन कर के,बताइये यह सही है और आप किसानों के हित की बात करते हैं? इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि बात करना है तो तर्क के साथ में करें. हमारी सरकार ने पिछले 13 वर्षों में अनेकों काम किये हैं, उन सब के लिए बात होनी चाहिए. अध्यक्ष महोदय, मैं बहुत विनम्रतापूर्वक हमारे प्रतिपक्ष के सदस्यों से कहना चाहता हूं. अपने मित्रों से कहना चाहता हूं कि आत्मा पर हाथ रखकर आप बोलें कि क्या किसान के हित में इस सरकार ने पिछले वर्षों में कोई काम नहीं किया? बहुत-सी बातें सुसाइड की सामने आईं. माननीय अध्यक्ष महोदय, प्रतिपक्ष के सदस्यों ने यह नहीं बताया कि उन किसानों के पास कितने सुसाइड नोट मिले? कोई वीडियों क्लिपिंग उनके पास मिली क्या? आज कल तो घर-घर में मोबाईल हो गये हैं, मोबाईल की कहीं कोई क्लिपिंग मिली चूंकि किसानों की संख्या ज्यादा है, तादाद ज्यादा है इस कारण से यह माना जाता है कि स्वाभाविक रूप से किसान यदि दर्ज है, रिकार्ड में उसके नाम से कुछ जमीन दर्ज है, घर के भी झगड़े होते हैं, पारिवारिक विवाद होते हैं, अन्य प्रकार की समस्यायें होती हैं, बीमारियाँ होती हैं इस कारण से यदि किसान आत्महत्या करते हैं तो उसके पीछे यह न माना जाना चाहिए वह कर्जदार ही हैं. कई किसान ऐसे हैं जिनके घर में पर्याप्त राशि मिली है लेकिन उन्होंने मृत्यु को प्राप्त किया है.

हमारे बहुत वरिष्ठ सदस्य रामनिवास जी हैं, इसी सत्र में आपके प्रश्न का एक उत्तर आया है. इस उत्तर में स्पष्ट है कि फसल की विफलता के कारण जो मृतक किसानों की संख्या है वह जीरो है.कर्ज के कारण 6, गरीबी से 2, नशे की लत के कारण 37, बीमारी से परेशान होकर 68, संपत्ति के कारण 5, पारिवारिक कारणों से 51, अन्य कारणों से 20 इस प्रकार कुल 189 किसानों की अलग-अलग कारणों से पिछले छह माह में मृत्यु राज्य के अंदर हुई है. अध्यक्ष महोदय, हम यह नहीं सकते है कि यह किसान ने दिवालिया होकर, किसान ने कर्ज के कारण, किसान ने प्रताड़ित होकर आत्महत्या कर ली. अध्यक्ष महोदय, नीति आयोग की जो रिपोर्ट आई है उसमें यह बात आई है और जहाँ तक किसानों का जो सुसाइड रेट है वह हमारे राज्य में सबसे नीचे है. लेकिन इसका भी हमें बहुत अफसोस है, दुख है. हमारा कोई भी भाई मरता है, चाहे वह किसान हो, व्यापारी हो, परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्र हो या किसी भी वर्ग का आदमी हो, खेतिहर श्रमिक हो, कोई भी हो सभी के लिए तकलीफ होती है, दुख होता है. लेकिन कुछ घटनायें ऐसी रहती हैं जिनको हम और आप कोई भी नहीं रोक सकते हैं लेकिन हमें नीतियाँ ऐसी बनानी चाहिए, क्रियान्वयन इतना पारदर्शी रखना चाहिए कि जितना संभव हो सके राज्य में इस प्रकार की घटनाएं रुके.

अध्यक्ष महोदय, यदि पार्टीगत बात करते हैं कि बीजेपी की सरकार होने के कारण यहाँ पर आत्महत्यायें हो रही हैं, तो मैं आपको पढ़कर बता रहा हूं, आत्महत्या का परसेंट पांडिच्चेरी में 43.2 है जबकि वहाँ आपकी कांग्रेस की सरकार है, सिक्किम में गैर भाजपा सरकार है वहाँ 37.5 परसेंट है, तेलंगाना में गैर भाजपा सरकार है वहाँ 27 परसेंट है, तामिलनाडु में अन्नाद्रुमक या द्रुमुक की सरकारें रही हैं, वहाँ 22 परसेंट है,केरल में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है वहाँ 21 परसेंट है, त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पार्टी की मार्क्सवादियों की सरकार है वहाँ 19 परसेंट है, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है वहाँ 17 परसेंट है, पश्चिम बंगाल में तृणमूल की सरकार है वहाँ 15 परसेंट है , महाराष्ट्र में पूर्व में जब आपकी कांग्रेस की सरकार थी,उस समय का रेट है 14 परसेंट और मध्यप्रदेश में यह रेट 13 परसेंट है. हालांकि यह 13 परसेंट भी नहीं होना चाहिए. यह हम सब लोगों के लिए चिंता की बात है कि देश में किसी भी किसान की मृत्यु हो, किसी भी वर्ग के व्यक्ति की मृत्यु हो. हमें लोक कल्याणकारी सरकार के लिए प्रयास यह करना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति की मृत्यु अभाव के कारण ना हो. लेकिन कुछ घटनायें ऐसी होती हैं जिनको हम रोक नहीं सकते हैं. माननीय गोविंद सिंह जी ने बहुत-सी बातें कहीं औऱ अनेकों सदस्यों ने प्रश्न लगाये हैं, जो स्थगन सूचनायें दी हैं. मैं इतना ही निवेदन करना चाहता हॅूं कि गोली चलाना कोई अच्‍छी बात नहीं है. जैसा गृहमंत्री जी ने अपने उत्‍तर में कहा है 109 कर्मचारी घायल हुए और कई बहुत गंभीर रूप से घायल हुए, परमानेंटली आंख डैमेज हो गई. अब उस कर्मचारी की आंख कभी सुधर नहीं सकती. क्‍या यह किसी विदेशी ने आकर किया था ? यह तो सब हमारे लोग थे और हमारे लोगों के लिए प्रेरित करने का काम, भड़काने का काम यदि किसी ने किया है तो वह ऐसे असामाजिक तत्‍वों ने किया, जो कतई सामाजिक नहीं थे, कतई अच्‍छे लोग नहीं थे. अन्‍य लोग थे और मैं कांग्रेसी मित्रों से भी कहना चाहता हॅूं कि राजनीति करने के लिए हमारे पास बहुत से विषय पडे़ हैं. बहुत-सी समस्‍याएं हैं. आज भी देश और प्रदेश बहुत-सी समस्‍याओं से जूझ रहा होगा. लेकिन मैं यह कहना चाहता हॅूं कि किसानों के शवों के ऊपर राजनीति नहीं करना चाहिए.

माननीय अध्‍यक्ष महोदय, श्री पी.के.यादव की आंख क्षतिग्रस्‍त हो गई है. कांग्रेस के मित्र हैं मैं नाम नहीं लेना चाहता. इसमें काफी नाम लिखे हुए हैं. जिन्‍होंने सक्रिय रूप से भाग लिया. वीडियोग्राफी है. हम कहना चाहते हैं कि राजनीति होगी जब मकाम होगा, उस समय तय कर लेंगे कि राजनीति की दिशा क्‍या होगी. बिजली की बात, सिंचाई की बात, फर्टिलाइजर की बात, उत्‍तम सीड की बात है. आज आप अपनी आत्‍मा पर हाथ रखकर बताएं कि क्‍या पहले से बेहतरी नहीं आयी है ? वर्ष 2003 के पहले जब मैं विधायक था. मैं एमएलए रेस्‍ट हाउस के फैमिली ब्‍लॉक में रहता था. मैंने वे दिन देखे हैं जब रेस्‍ट हाउस में सुबह 6 बजे से सुबह 10 बजे तक बिजली बंद रहती थी, जबकि हम लोग विधायक थे. एक प्रकार से सरकार के अंग थे लेकिन मैंने सुबह-सुबह मोमबत्‍ती में, लालटेन में अखबार पढे़ हैं क्‍योंकि मुझे स्‍थगन और ध्‍यानाकर्षण सूचनाएं देना पड़ती थीं. क्‍या हमने वह दिन नहीं देखें हैं. हर किसानों के पास जनरेटरों का अंबार लग गया था. विद्युत उत्‍पादन कितना था, मोटर बाईंडिंग के लिए वायर नहीं मिलता था. वह काले दिन थे. हमारे सभी वरिष्‍ठ सदस्‍य बैठे हैं. क्‍या हम वह भूल जाएंगे. याद नहीं करेंगे. हम विद्युत उत्‍पादन के मामले में बहुत बेहतरी में आएं हैं. रबी की फसल की आधी जमीन असिंचित पड़ी रहती थी. आज वह पूरी सिंचित है. कृषि उत्‍पादन बढ़ा है और कई गुना बढ़ा है. गर्व से कहने की बात है कि हम आज कृषि उत्‍पादन के मामले में और जीडीपी के मामले में पंजाब और हरियाणा से भी आगे हैं. (मेजों की थपथपाहट) यह नीति आयोग की रिपोर्ट है. यह पूरा का पूरा प्रामाणिक है. कृषि उत्‍पादन के मामले में, सिंचाई के मामले में आगे हैं. सिंचाई कितनी बढ़ गई है. जब आप लोगों की सरकार थी कृषि ग्रामीण विकास बैंक से ऋण लिया जाता था, हर महीने 24 परसेंट इंट्रेस्‍ट लगता था, आप लोगों को याद होगा और जब कम्‍युलेट होता था तो वह 40 परसेंट तक हो जाता था. कभी कोई किसान अपनी जमीन वापस नहीं ले पाया और हम लोगों ने तय किया कि आज भी हजारों एकड़ जमीन एलडीपी में बंधक रखी हुई है. माननीय मुख्‍यमंत्री जी ने कहा और हम सभी लोगों ने भी तय किया कि एक इंच जमीन भी हम नीलाम नहीं होने देंगे, भले ही पैसा वापस आए अथवा नहीं आए. (मेजों की थपथपाहट) सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक, अपेक्‍स बैंक की दरें सहकारिता के क्षेत्र में जो हमारे बैंक हैं उनकी दरें कभी 24 परसेंट, 22 परसेंट हुआ करती थी घटते-घटते 7, 5, 4, 3 और आते ही हमने शून्‍य कर दी. लोग आश्‍चर्य करते हैं कि बिना ब्‍याज का ऋण और उसके ऊपर मूल में भी छूट है. 10000 रूपए का ऋण लेंगे तो 9000 रूपए वापस करने पडे़गे तो उसमें 1000 रूपए की भी छूट क्‍या किसान के लिए यह सुविधाएं नहीं मिलीं ? व्‍यवस्‍थाएं नहीं मिलीं ? आज मैं यह कहना चाहता हॅूं कि हमें दिल पर हाथ रखकर इस बात को सोचना चाहिए कि हमने क्‍या बेहतर किया और हमें आज बैठकर चर्चा करना चाहिए कि हम क्‍या बेहतर से बेहतर और ज्‍यादा कर सकते हैं. हमने कृषि केबिनेट बनायी और कृषि केबिनेट में वे तमाम फैसले जो किसानों के हित में हो सकते हैं लगातार बैठकें करके हम लोगों ने लागू किया है. घटना के बारे में मुख्‍यमंत्री जी ने केबिनेट की फिर बैठक की और उसके बाद बाहर से विशेषज्ञ बुलाए. दिल्‍ली के पूसा से आईसीएआर के विशेषज्ञ बुलाए गए और विस्‍तृत रूप से यह चर्चा हुई कि हम बेहतर मार्केटिंग कैसे कर सकते हैं ? उत्‍पादन में तो हम आगे हो गए लेकिन हम मार्केटिंग बेहतर से बेहतर कैसे कर सकते हैं ? यह सबको जानकारी है कि नाफेड आज कमजोर आर्थिक स्‍थिति में चल रहा है. चने की, मसूर की, अरहर की, मूंग की जो खरीद होनी चाहिए वह आज नाफेड के माध्‍यम से पूरी तरह से नहीं हो रही है, तो सरकार ने एक हजार करोड़ रुपये यानि कि 10 अरब रुपये का अपना स्‍वयं का मूल्‍य स्‍थरीकरण के लिए फंड बनाया जो कि हिंदुस्‍तान के इतिहास में, मध्‍यप्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ है. एक हजार करोड़ रुपये का फंड स्‍थाई सर्विस के लिए सरकार ने इसलिए बनाया कि यदि घाटा होता हो तो हो जाए, लेकिन मध्‍यप्रदेश के किसी किसान को घाटा न हो, उसे अपनी जान न देनी पड़े.

अध्‍यक्ष महोदय, रोज अखबारों में प्‍याज की खबर आ रही है, कह दिया गया है कि 8 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से प्‍याज खरीदेंगे और यदि खराब हो जाए तो भी किसान को नुकसान नहीं होने देंगे, एक बार सरकार के लिए नुकसान हो जाए, हम अपनी 10 योजनाओं में कटौती कर देंगे, लेकिन किसान के पेट पर लात नहीं मारने देंगे.

अध्‍यक्ष महोदय, दर्जनों बातें ऐसी हैं, जिनके कारण मैं अपने विपक्ष के साथियों से कहना चाहता हूँ कि हमें खुले दिल से, राज्‍य के किसानों के हित में और अन्‍य सभी वर्गों के हित में काम करना चाहिए तो मुझे लगता है कि मध्‍यप्रदेश में जैसे हम बेहतर स्‍थिति में आए हैं और ज्‍यादा बेहतर कर सकते हैं अन्‍यथा वही पुराने दिन लौट आएंगे. मुझे स्‍मरण है कि आस्‍ट्रेलिया का वह लाल गेहूँ, लोग तो क्‍या जानवर भी नहीं खाते थे जो ये इम्‍पोर्ट करवाते थे, आस्‍ट्रेलिया के वे लाल गेहूँ खाने के बुरे दिन न आएं. अब तो मुझे खुशी है कि मध्‍यप्रदेश की शरबती और मध्‍यप्रदेश का बासमती आस्‍ट्रेलिया वाले खा रहे हैं तो यह हम लोगों के कारण हुआ है.

अध्‍यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्‍यों से कहना चाहता हूँ कि ये जो हमारी प्रवृत्‍ति है, इस प्रवृत्‍ति में हमें परिवर्तन करना पड़ेगा. किसान के मुद्दे को लेकर हर गाँव में, हर कस्‍बे में, जिला मुख्‍यालय पर या जगह-जगह पर मजमे करके हम शायद यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मध्‍यप्रदेश कृषि के मामले में पिछड़ा है, किसान दु:खी है, लेकिन इससे पूरे प्रदेश की बदनामी होती है, पूरे प्रदेश की अवमानना होती है. यदि मेरी अवमानना होगी, भारतीय जनता पार्टी के सदस्‍य की अवमानना होगी तो मैं सदस्‍य तो हूँ ही, लेकिन एक नागरिक भी हूँ. इस कारण से मैं कहना चाहता हूँ कि आपकी भी अवमानना होगी.

मैं पूर्व में बोल चुका हूं, फसल बीमा का 4660 करोड़ रुपया, पिछले साल ही किसानों के लिए दिया गया है. मैं सदस्यों को बताना चाहता हूं कि आपको सुनकर आश्चर्य होगा. सीहोर जिले में कुल 26 करोड़ रुपया प्रीमियम का जमा हुआ था और बदले में 443 करोड़ रुपया सीहोर जिले के लिए बंटा है. विदिशा में 21 करोड़ रुपया प्रीमियम का जमा हुआ था, 310 करोड़ रुपया बंटा है. रायसेन में 18 करोड़ रुपया प्रीमियम में जमा हुआ था, 172 करोड़ रुपया बंटा है. सागर जिले में 16 करोड़ रुपया प्रीमियम का जमा हुआ था, 254 करोड़ रुपया बंटा है, बुन्देलखंड में बंटा है. मैं इसीलिए इन बातों को कह रहा हूं, जो माननीय श्री के.पी. सिंह साहब कह रहे थे. इसकी रेलिवेंसी है, इसकी सम्बद्धता है, इसका औचित्य है और इसीलिए भी है कि जहां आत्महत्या की बात आती है, जहां गोली चालन की बात आती है, जहां घटनाओं की बात आती है, वहां इन तथ्यों को भी देखना पड़ेगा कि हमने कृषि के क्षेत्र में क्या-क्या किया है. राहत राशि भी लगभग 4600 करोड़ रुपए हमने दी है. इसके बाद में आरबीसी 6 (4) में जितने संशोधन हुए, जितने सुधार हुए, और ज्यादा किया है कि यदि किसान की भैंस, बैल की मृत्यु हो जाय, वह बह जाय, दुर्घटना में, करंट में, सर्प के काटने से कुछ हो जाय, अभी तक तो आदमी के लिए नियम था, मुख्यमंत्री जी ने उसमें पशुओं तक में नियम कर दिया.

अध्यक्ष महोदय, मैं यह कहना चाहता हूं कि सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, यह क्या रेलिवेंट नहीं है? रेलिवेंसी है, इस कारण से मैं इन बातों को कहना चाहता हूं. आरबीसी 6 (4) में लगातार सुधार हुआ है. गेहूं का उपार्जन 70 लाख टन गेहूं खरीदा गया है, उन्हीं प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़कों से मंडियों में उपार्जन केन्दों पर आया, इसलिए इन बातों को कह रहा हूं. सॉइल हेल्थ कॉर्ड, घर जाकर सॉइल हेल्थ कॉर्ड बनाने का काम हो रहा है, हमारा इसके लिए ग्रामोदय अभियान चला. सबसे बड़ी बात जो मुख्यमंत्री जी ने कही है कि अब हम खसरा, खतौनी की नकल एक-एक किसान के घर पर जाकर देंगे ताकि किसी प्रकार के भ्रष्टाचार की कोई गुंजाईश प्रदेश में नहीं रहे. इससे बड़ी क्या उपलब्धि हो सकती है? (अध्यक्ष महोदय, अनेकों बातें हैं, इतना ही कहना चाहता हूं कि मध्यप्रदेश एक शांति का टापू है और जब से हमारे यहां डाकू उन्मूलन हुआ है, मध्यप्रदेश में इस प्रकार की कोई घटना घटित नहीं हुई है, जिससे इस प्रदेश के ऊपर कोई कलंक आए, इस प्रदेश के ऊपर कोई कालिख आए, इस प्रदेश के ऊपर कोई ऊंगली उठाए. यह प्रदेश हम सबका है, मेरा भी है, आपका भी है, सभी का है. हम सभी मध्यप्रदेशवासी शान के साथ में यह कह सकते हैं कि हम कृषि उत्पादन के मामले में देश में अव्वल हैं और जब अव्वल हैं तो स्वाभाविक रूप से यह स्वतः सिद्ध है कि किसान भी सुखी होगा ही, क्योंकि यह कृषि उत्पादन कहां से बढ़ता है, किसान की समृद्धता से और जब किसान समृद्ध है तो मैं यह मानकर चलता हूं कि कोई कारण ऐसा नहीं है कि जिसमें हमें पुलिस का प्रयोग करना पड़े, प्रशासन का प्रयोग करना पड़े, कोई अप्रिय स्थिति न आए और यदि लाई जाती है तो निश्चित रूप से हम सभी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है.

अध्यक्ष महोदय, मैं माननीय सदस्यों से यही कहना चाहता हूं. बहुत लोग आ रहे हैं. मंदसौर के लिए आप तीर्थ मत बनाएं, यह अच्छी परंपरा नहीं है, इसलिए मैं कहना चाहता हूं कि इससे एक प्रदूषण का वातावरण भी बनता है. राहुल भैया भी वहां पर गये थे, आप भी गये थे. राहुल गांधी जी गये थे और नानी जी के यहां से जब से लौटे हैं तो नानी जी की कहानियां तो बड़ी शिक्षाप्रद होती थीं, पता नहीं नानी जी ने राहुल भैया को कैसी कहानी सुनाई होगी मुझे तो नहीं मालूम, लेकिन यहां पर नानी याद आ जाएगी, हम नहीं बताना चाहते, इसलिए आप सब इसको नहीं करें. अध्यक्ष महोदय, जो आपने समय दिया, उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.

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