एजेंट कांग्रेस क्यों समझे मोदी का दर्द

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भारत की कांग्रेस गणराज्य के विभिन्न समूहों का महासंघ रही है।उसका किसी विचारधारा से कोई लेना देना कभी नहीं रहा। जो जहां से आ गया उसे उसके नेता समेत मंच पर जगह मिल गई। भारत की आजादी के विचार के लिए ये वक्त की जरूरत थी। यही वजह थी कि अंग्रेजों को अपना उत्तराधिकारी चुनने में आसानी हो गई। जब 1857 की क्रांति असफल हो गई तो अंग्रेजों को ये अहसास हो गया था कि स्थानीय लोगों को सत्ता में भागीदार बनाए बगैर वह इतने विशाल देश पर शासन नहीं कर सकते हैं। इसीलिए ए.ओ.ह्यूम ने तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन की सलाह से 1884 ईस्वी में इंडियन नेशनल यूनियन की स्थापना की थी। डफरिन भी चाहता था कि भारत के राजनीतिज्ञ वर्ष में एक बार इकट्ठे हों और उनकी सुविधा और नाराजगी को ध्यान रखते हुए भारत का शासन चलाया जा सके।इस संगठन की स्थापना से पूर्व ह्यूम इंग्लैण्ड गये, जहां उन्होंने रिपन, डलहौजी जान व्राइट एवं स्लेग जैसे राजनीतिज्ञों से इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया। भारत आने से पहले ह्यूम ने इंग्लैण्ड में भारतीय समस्याओं के प्रति ब्रिटिश संसद के सदस्यों में रुचि पैदा करने के उद्देश्य से एक ‘भारत संसदीय समिति’ की स्थापना की। भारत आने पर ह्यूम ने ‘इण्डियन नेशनल यूनियन’ की एक बैठक मुम्बई में 25 दिसम्बर, 1885 को की, जहां पर व्यापक विचार विमर्श के बाद इण्डियन नेशनल युनियन का नाम बदलकर ‘इण्डियन नेशनल कांग्रेस’ या ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ रखा गया। यहीं पर इस संस्था ने जन्म लिया।

लाला लाजपत राय ने अपनी पुस्तक ‘यंग इंडिया’ में लिखा है कि ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना का मुख्य कारण यह था कि इसके संस्थापकों की उत्कंठा ब्रिटिश साम्राज्य को छिन्न-भिन्न होने से बचाने की थी। ह्यूम के जीवनीकार वेडरबर्न ने लिखा है है कि भारत में असन्तोष की बढ़ती हुई शक्तियों से बचने के लिए एक अभयदीप की आवश्यकता है और कांग्रेसी आन्दोलन से बढ़कर अभयदीप नामक दूसरी कोई चीज़ नहीं हो सकती। रजनीपाम दत्त ने अपनी पुस्तक इण्डिया टुडे में लिखा है कि ‘कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश सरकार की एक पूर्व नियोजित गुप्त योजना के अनुसार की गयी।” इस कांग्रेस में शामिल भारतीय नेता भी जानते थे कि ये अंग्रेजों की पिछलग्गू संस्था ही है। इसके बावजूद वे लहर पर सवार होने की कोशिश में कांग्रेस में शामिल रहे।

जब आजादी के बाद इन नेताओं ने गांधीजी से अंग्रेजों के षड़यंत्रों के बारे में शिकायत की और कहा कि वे इसी कांग्रेस के नाम पर अपना छद्म शासन जारी रखना चाहते हैं तो गांधीजी ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि कांग्रेस अपना काम कर चुकी है अब उसका अवसान कर देना चाहिए। इसके बावजूद अंग्रेजों के एजेंट बनकर नेहरू ने कांग्रेस की सफलता पर अपनी सवारी नहीं छोड़ी। जाहिर है आज नेहरू के निधन के 52 सालों बाद उनके वंशज राहुल गांधी कैसे अपने पुरखों की गलती स्वीकार सकते हैं। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा कार्यालय की आधारशिला रखते वक्त कहा कि आजाद हिंदुस्तान में जितना संघर्ष भाजपा के कार्यकर्ताओं को करना पड़ा है उतना तो आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं करना पड़ा था। मोदी के इस बयान पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचें वाले अंदाज में राहुल गांधी बोले कि मोदी को अज्ञानता से आजादी मिले। मरती कांग्रेस के वारिस से इसके अलावा क्या बोलने की उम्मीद की जा सकती थी।

वहीं मोदी ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा था कि आजादी के बाद उसके नेताओं की हर बात को गलत ठहराया गया। यही वजह है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को कठिन संघर्षों से जूझना पड़ा। अब जबकि देश को ये मालूम पड़ चुका है कि अंग्रेजों ने लार्ड माऊंटबेटन और नेहरू के सहयोग से जो ट्रांसफर आफ पावर एग्रीमेंट हस्ताक्षरित किया था उसने किस तरह अंग्रेजों को मुनाफे के धंधों में भागीदारी दिलाई। आज जब ब्रिटेन का पाऊंड 87.85 रुपए में आ रहा है तब इस षड़यंत्र को आसानी से समझा जा सकता है कि किस तरह ब्रिटेन ने आजाद हिंदुस्तान से भी अपनी आय जारी रखी है। यही वजह है कि भारत में ब्रिटेन की लाबी आज भी बड़े निर्णायक के तौर पर कार्य कर रही है। इस लाबी के एजेंट भारत के जमीनी राजनेताओं को धूल धूसरित करने में जुटे रहते हैं। वे उन नेताओं को चंदा दिलाते हैं। उन्हें गुमराह करते हैं और फिर उन्हें बदनाम कर उन्हें सत्ता की दौड़ से बाहर धकेल देते हैं।

मोदी जी की बात सौ फीसदी सही है। भाजपा को आज के वैभव तक पहुंचाने के लिए इसके नेताओं को तरह तरह की यातनाएं झेलनी पड़ी हैं। प्रधानमंत्री खुद उसी प्रताड़ना तंत्र के बीच से तपकर आए हैं। वे जानते हैं कि जमीनी नेताओं को प्रताड़ित करने का ये अभियान आज भी जारी है। अब इसकी कमान भाजपा और संघ में घुसपैठ कर चुके कुछेक कार्यकर्ता संभाले हुए हैं। इसके बावजूद मोदी इससे मुकाबले का तंत्र विकसित करने में जुटे हुए हैं। ये संतोष की बात है कि देश की नई पीढ़ी ब्रितानी हुकूमत और उसके एजेंटों की हरकतों को समझ रही है। यही वजह है कि तमाम षड़यंत्रों और शिकायतों के बावजूद देश की जनता भाजपा की विकास यात्रा को जारी रखे हुए है। देश को बुलंदियों तक ले जाने में जुटे नेताओं को अपना नजरिया साफ रखना होगा। उन्हें कांग्रेस की पूंछ पकड़कर चलने वाली अपनी प्रवृत्ति पर विराम लगाना होगा। मोदी बेशक शेर की चाल से अपना मार्ग प्रशस्त करते चले जा रहे हैं पर देश के लोगों को भी अपनी भूमिका पर अमल करना होगा। भाजपा ने अपने भीतर छुपे अंग्रेजों के एजेंटों पर लगाम नहीं लगाई तो आज जो लोग भाजपा का बधियाकरण करने में जुटे हैं वे क्षेत्रीय दलों को उभारकर इस नए स्वाधीनता संग्राम को कुचलने में कामयाब हो जाएंगे।

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