ऐसे ही डूबी कांग्रेस की महानता

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कोयला नीलामी कांड से जनचर्चा के घेरे में आए नवीन जिंदल दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस महान पार्टी है। लोग इसमें आते जाते रहते हैं इसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। भारत में एक कहावत हमेशा कही जाती है कि रस्सी जल जाए पर बल न जाए। कमोबेश यही हालत इन दिनों कांग्रेस की है। मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस और भी दुर्गति में है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव कांग्रेस को उसकी परंपराओं की नींव पर ही पुख्ता करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके प्रयास एक दिन मरने की कगार पर खड़ी कांग्रेस में जान फूंक देंगे। कांग्रेस के कई बड़े नेता इसी मुगालते में जी रहे हैं। हकीकत ये है कि गया हुआ समय कभी वापस नहीं आता। कांग्रेस का भी एक समय था। आजादी के दौर में तो पूरे देश के जमींदारों, सामंतों पूंजीपतियों ने कांग्रेस के बैनर पर ही गरीबों को लामबंद करने का करिश्मा किया था। तब मुगल शासकों को निपटाने में इस्तेमाल हुए अंग्रेज भारत के सेठों को ही लूटने में लग गए थे। उन्होंने नए नए कानून बनाकर रियासतों से लेकर राजे रजवाड़े तक हड़प लिए थे। जाहिर था कि तब अंग्रेजों से निपटना भारत के हर वर्ग हर जाति समूह और हर आम आदमी की जरूरत थी। उस सफलता के बाद निपटने और निपटाने की नीति का खात्मा कर दिया जाना था। गांधीजी ने तो बाकायदा अपने भाषणों में कहा कि कांग्रेस का काम खत्म हो गया है इसे अब भंग कर दिया जाना चाहिए। इसके बावजूद नेहरू और उनके सहयोगियों ने नए सिरे से कहानी लिखने के बजाए लोकप्रिय कांग्रेस के बैनर पर ही सवारी गांठने का फैसला कर लिया। उसके बाद कांग्रेसियों की हर नई पीढ़ी सफलता की गारंटी वाली इस सत्ता को छोड़ने राजी नहीं हुई। कभी अंग्रेजों से करीबी रखने वाली कांग्रेस अंग्रेजों के फार्मूलों पर ही देश में राज करने लगी। उसके नेताओं को अच्छी तरह पता है कि सत्ता में बने रहने के लिए हमें समाज के किस तबके को खुश रखना है। वे कौन से साधन अपनाने हैं कि गरीब का नाम लेकर अमीरों को खुश किया जाए। यही वजह है कि कांग्रेस हमेशा से गरीबी हटाओ का नारा तो लगाती रही लेकिन गरीबों को गरीब बनाए रखने की नीति पर ही काम करती रही। नतीजतन हिंदुस्तान में उत्पादकता का ग्राफ कभी नहीं बढ़ सका। जितनी उत्पादकता बढ़ी उतनी ही जनसंख्या बढ़ गई और संसाधन फिर कम पड़ गए। यही वजह है कि आज सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश की मुद्रा ब्रिटेन की मुद्रा के सामने भिखारी बनी नजर आती है। डालर के सामने ही वह कराहती नजर आती है। कई छोटे छोटे देशों की मुद्रा भी भारत की मुद्रा के सामने पहलवान की तरह सीना ताने खड़ीं हैं। गरीबों और अमीरों के बीच लगातार बढ़ते इस अंतर के कारण ही असंतोष फैला और लोगों ने नरेन्द्र मोदी की आवाज में अपनी आवाज मिलाकर कांग्रेस को विदा कर दिया। हार के चीथड़े पहिनने के बाद भी कांग्रेस के नेताओं का दंभ जहां का तहां खड़ा है।रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। कांग्रेस के नेता अपने ऐंठ भरे दावे करने से नहीं चूक रहे हैं। वहीं वे आम इंसान की भावनाओं को भी समझने तैयार नहीं है।
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हाल में जब मुख्यमंत्री निवास पर दद्दाजी ने मिट्टी के शिवलिंग बनाने का अभियान चलाया तब भक्तों के बीच भजनों का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। इस आयोजन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अपने परिवार के साथ मौजूद थे। इस दौरान उनकी धर्मपत्नी साधना जी ने प्रफुल्लित मुख्यमंत्री के गाल में प्यार भरी चिकोटी काट ली। ये मुख्यमंत्री बने आम नागरिकों की भावनाएं ही थीं लेकिन कांग्रेस उसे तमाशा बनाने में लग गई। कांग्रेसियों का कहना है कि सार्वजनिक मंच पर इस तरह की हरकतें उचित नहीं हैं। ये बात सही है कि आमतौर पर स्त्री और पुरुष के बीच इस तरह की चुहलबाजियां घरों के भीतर ही होती हैं। पर ये भी सही है कि ये आयोजन मुख्यमंत्री निवास पर हो रहा था। इस आयोजन में भी मुख्यमंत्री जी सपत्नीक शामिल थे। ये आयोजन की सफलता ही कही जाएगी जिसने उसमें शामिल लोगों के बीच दूरियां घटा दीं। ऐसे आयोजन की तारीफ की जानी चाहिए। इसके बावजूद कांग्रेस के नेता निहायत पारिवारिक घटना को तूल देने में जुट गए हैं। कांग्रेस को प्रदेश के उन मुद्दों पर बात करनी चाहिए थी जो आम जनता को प्रभावित करते हैं। जिनसे प्रदेश के आम लोगों का जीवन संवारा जा सकता है। लेकिन वह ये नहीं कर रही है। ये भी उसकी परंपरा है। वह आम लोगों का नाम भले ही लेती रहती हो पर हमेशा वह बड़े लोगों के मुद्दे ही उठाती रही है। इस मामले में भी वह मुख्यमंत्री पर निशाना साधकर जनता के मूलभूत मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने का काम कर रही है। उसे इस नीति से बाज आना चाहिए। अभी तो जनता ने उसे विपक्ष में बिठा दिया है। यदि उसने आम जनता की आवाज बनने के बजाए इसी तरह के दांव पेंच न छोड़े तो वह दिन दूर नहीं जब लोग कांग्रेसियों को देखते ही उन्हें हकालने लगेंगे।

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